पार्ट-1भजन कपि हनुमान बलवान, स्व.चिरंजीलालजी पुजारी द्वारा
#SALASAR BALAJI BHAJAN MANDALI #SALASAR BALAJI BHAJAN MANDALI
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 Published On Jul 12, 2024

lyrics के कारण ही इस भजन को दो भागों में बांटना पड़ा है। अतः कष्ट के लिए क्षमा करें और इस सुंदरकांड के समान भजन का आनंद ले।

कपि हनुमान बलवान, काज रघुवर का सारया है॥

उठाव- बड़े राम के दूत ,पवन के पूत, मुद्रिका लिन्ही,
लंका पुर जाऊँ चाल, सुरत धर लिन्ही।
उठाव- मन म हर्ष कपी जबर ल्याऊँगा खबर लंक रंग भीनी,
जहाँ रहती सीता मात,दुष्ट हर लिन्ही॥
ढाल- मैं लंका पुर जाऊँगा, माता की खबर ल्याऊँगा।
बल अपना अजमाऊँगा, गुण रघुवर के गाऊँगा॥

संगीत-
सौ योजन मरयाद सिन्धु की देख्या है जब ध्यान लगाय,
खल हल नीर बहे सिंधु की देख्या जाता जी डरपाय,
अंजनी के पुत्र पवन बलदाई पर्वत न दिया पता लगाय,
दुष्ट एक रहता सिंधु म उड़ता पंछी दिया गिराय,
महाबीर की छाया पकड़ी दे मुक्का दिया प्राण गवाय,
अब पहुँचे है समंद किनारे लंका गढ़ न देखी जाय,
सोने की गढ़ लंका बँका चौ तरफ बना है नीर,
राक्षस का पहरा लाग हाथ म धनुष तीर
सुंदर-सुंदर बाग देख्या बाग बीच हरियाली,
चम्पा हीना मोगरा और केतकी की झुकी ह डाली,
भँवर गुंजार कर सींच रहया क्यार माली -3॥

उठाव- जिनका रावण है महिपाल देख रह्या हाल खड्या गढ़ लंक
किनारे॥कपि हनुमान…॥1॥

संगीत-
बंदर भूप धर छोटा रूप शोभा अनूप जिनकी बरणी,
दिन रहा न शेष किया नगर प्रवेश बंदर नरेश की सुधकरणी,
द्वारे पे और राक्षसी घोर लंका के चोर की नित चरनी,
दिया मुक्का मार हो गई लाचार भई रुधिर धार गिर गई धरणी,
जब हुआ ज्ञान गई कहना मान ओ महावीर शोभा बरणी,
तुम सिद्ध करो तेरा काज सरो और दुष्ट मरो लंका जरणी
हनुमान लंका प्रवेश कर धीरे धीरे चल आया,
अजब महल देख्या रावण का उसी महल म चल ध्याया,
जहाँ न सीता माता देखी कुम्भकरण की थी माया,
चार कोश म मूछ पड़ी थी कुम्भकरण सुता पाया,
फिरता-फिरता हनुमान न जब विभीषण को देख्या धाम,
हरि का भगत था वो रट रया राम राम,
बजरंगी विचारयो मेरो सिद्ध होसि सब काम,
हाथ जोड़ क कहन लाग्या देखी चाहूँ सिया मात,
भेद तो बताय दिया भेज दिया उसी स्यात्,
सिया का दरश कारण हर्ष रयो सारो गात-3॥

उठाव- दुर्बल देख शरीर नयन बहे नीर क्रोध हिय हो रह्या भारा है॥
कपि हनुमान…॥2॥
संगीत-
रावण सा अभिमानी दाना चाल रात आधी आया,
मंदोदरी सी स्यानी राणी संग में लेके चल ध्याया,
जनक नन्दिनी कहने लागी यही वचन जब फरमाया,
रघुवर मेरी या अभिलाषा सुफल होय जग में काया,
सूण रावण अभिमानी बाणी काल शीश तेरे छाया,
एक दिन रोवे नार मंदोदरी बांनर लुटे धन माया,
सोनेकी गढ़ लंका जली जा खार समंद्र सुखा पाया,
इतना वचन सूण्यां रावण ने काढ़ खड़ग मारण ध्याया,
मंदोदरी ने खड़ग पकड़ के रावण को जब समझाया,
जगत पिता श्री राम न जानो सियाराम की है माया,
एक मास की म्याद घाल कर रावण उल्टा घर आया,
रावण उल्टा घर आया सिया मन भई धीर,
उठियो दरियाव दिल में नैन बीच बहे नीर,
कौनसो जतन करूँ आये नही रघुवीर,
अशोक के दरखत मेरी जरा करो प्रतिपाल,
काया न भस्म करो अग्नि ऊपर से डाल,
इतना वचन सूण अंजनी के हंसे लाल-3॥

उठाव- होके बड़ा हुँशियार आये नही बाहर गोद मे मुँद्रा डारया है॥
कपि हनुमान….॥3॥

चौपाई-
देख मुद्रिका अति मन मोहे, राम नाम अंकित अति सोहे।
जीत सके ना अजय रघुराई, माया ते ऐसी रची नही जाई।
सीता मन म विचार कर नाना, मधुर बचन बोले हनुमाना॥

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