Published On Oct 18, 2020
मदन मोहन जी का शुमार महानतम संगीतकारों में होता है. मगर पुरस्कार पाने वालों की सूची में उनका नाम काफी पीछे नज़र आता है. पर मुझे लगता है ये पुरस्कार प्रदान करने वाली कंपनियों का दुर्भाग्य ज्यादा है की वो अपने पुरस्कारों पे मदन मोहन जैसी महान हस्ती का नाम खुदवाने से चूक गए. साथ ही ये उस समय के फिल्म संगीत प्रमियों की ज्यादती भी कही जा सकती है. इसकी एक बड़ी वजह, जो शायद खुद मदन जी भी जानते थे, ये थी की उनकी ज़्यादातर फिल्मों के गीत तो बहुत लोकप्रिय होते थे पर वो फिल्में लोकप्रियता में दूसरी फिल्मों से पिछड़ जाती थी.
ऐसी ही एक फिल्म थी 1962 की “मनमौजी” जिसका संगीत काफ़ी लोकप्रिय हुआ. खासकर प्रस्तुत गीत “मैं तो तुम संग नैन मिलाके हार गई सजाना..” आज भी एक बहुत लोकप्रिय है. Typical मदन मोहन जी के संगीत की छाप लिए हुए ये sad song फ़ास्ट रीदम में स्वरबद्ध होने के बावज़ूद इतना मधुर और कर्णप्रिय बना है. कुछ कुछ उनके खुद के बेहद लोकप्रिय “क़दर जाने ना, मोरा बालम बेदर्दी ....” की हलकी सी याद दिलाता हुआ. मगर छह साल के अंतराल के बाद “मैं तो तुम संग...” का ऑर्केस्ट्रा एकदम अलग... थोडा वेस्टर्न अंदाज़ लिए हुए.
“मनमौजी” के निर्माता थे AVM बैनर (A V मय्यप्पन). इस फिल्म के गीतकार हैं राजिंदर कृष्ण. राजिंदर कृष्ण जी उन गीतकारों में से हैं जिन्होंने फैक्ट्री की मशीन की तरह गीतों का उत्पादन कभी नहीं किया और जो भी लिखा उम्दा लिखा. राजिंदर कृष्ण जी हमेशा सोच में खोए रहते थे. और अचानक दिमाग से गीत निकलता. फ्रिज का दरवाजा खोलने के बाद सोचते की कुछ निकालने के लिए फ्रिज खोला था या कुछ रखने के लिए. लगातार Gold Flake सिगरेट के कश लगाते रहते और उसकी राख़ झटकना भी भूल जाते थे. AVM के A V मय्यप्पन जी को धुम्रपान करने वाले बिलकुल नहीं सुहाते थे. मगर राजिंदर कृष्ण जी के लिए सब माफ़. उनके लिए एक full time attendant तैनात रहता जो राजिंदर कृष्ण जी के धुम्रपान से उत्पन्न परेशानियों की तरफ ध्यान देता. और ये एक दो फिल्मो की बात नहीं. राजिंदर कृष्ण जी ने AVM बैनर के साथ 16 फिल्में की. इसे राजिंदर कृष्ण जी की काबिलियत पर A V मय्यप्पन के अटूट विश्वास का प्रमाणपत्र कह सकते हैं.
लता दीदी के बेहतरीन गीतों में से एक. खासकर उनके साधना जी पर फिल्माए सभी गीत एक से बढ़कर एक हैं.