Published On Aug 19, 2019
“परख” (1960) बिमल रॉय जी एक और अमर कलाकृति जिसने, मधुमती (1958) और सुजाता (1959) के बाद उन्हें लगातार तीसरा Filmfare Best Director का award दिलवाया. कहते हैं की बिमल दा ने इस फिल्म को बिना गानों की बनाने का निश्चय किया था क्योंकि उन्हें इसमें गानों का कोई scope नहीं नज़र आया. सलील चौधरी जी को उन्होंने स्टोरी लिखने की जिम्मेदारी सौंपी और शैलेद्र जी को डायलॉग लिखने की. बाद में शैलेद्र जी और सलील दा ने मिलीभगत करके उन्हें convince किया की इस फिल्म में गानों के लिए काफ़ी scope है और उन्हें मना लिया. सोचिए अगर वो ऐसा नहीं करते तो हम लोग “ओ सजना, बरखा बहार आई” और “मिला है किसीका झुमका, ठंडे ठंडे हरे हरे नीम तले” जैसे अमर गीतों से वंचित रह जाते.
“ओ सजना बरखा बहार आई”, लता दीदी के भी सबसे favourite गानों में से एक है. सलिल दा को इस गीत की प्रेरणा तब मिली जब वो भरी बारिश में कार ड्राइव कर रहे थे. पानी की मोटी मोटी बूंदे गाडी के शीशे पर पड़ रहीं थी और साथ में Wiper की वो लयबद्ध आवाज़. एक उस्ताद को और क्या चाहिए.. इस गीत का picturization भी इतना सुन्दर बन पड़ा है की पूछिए मत. शैलेन्द्र जी के लाज़वाब बोल और सलील दा का स्वर्गीय संगीत.. सितार, जलतरंग, तबले का सुरीला संगम. लता दीदी की आवाज़ के बारे में कुछ कहने की ज़रुरत नहीं. गीत तो अमर होना ही था.