विशेष साक्षात्कार(प्रख्यात लक्ष्मण अभिनेता पं.सन्त कुमार मिश्र उर्फ मुन्ना 'अकेला') भाग-1.Pl.L.S.S.🔔
Dr. Deep Kumar Shukla (Journalist) Dr. Deep Kumar Shukla (Journalist)
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 Published On Mar 3, 2023

ख्यातिलब्ध पूर्व लक्ष्मण अभिनेता पं.सन्त कुमार मिश्र उर्फ़ मुन्ना ‘अकेला’ कानपुर रामलीला जगत का सर्वाधिक चर्चित नाम रहा है| यह नाम सन 1962 में उस समय चर्चा में आया जब बहुचर्चित परशुराम अभिनेता प.शिवदत्त अग्निहोत्री ने इनके तीखे संवादों से खीजते हुए अपने फरसे से घातक वार करके इन्हें लहूलुहान कर दिया था| तब इन्हें तत्काल अस्पताल ले जाना पड़ा था| फरसे के प्रहार से इनकी पीठ पर दाहिने कंधे के पीछे हुए घाव में सात तथा बाएं हाँथ के घाव में तीन टाँके लगे थे| उस समय अकेला जी की अवस्था लगभग तेरह वर्ष की थी| पं.सन्त कुमार मिश्र ने लगभग नौ वर्ष की अवस्था से लक्ष्मण का अभिनय सीखना प्रारम्भ किया था| तब आप पांचवी कक्षा के विद्यार्थी थे| इनके प्रथम अभिनय गुरु पं.रामबली पाण्डेय उर्फ़ देवेश जी थे| देवेश जी रामलीला में वाणासुर का अभिनय करते थे तथा लेखक भी थे| साथ ही छोटे-छोटे ब्राह्मण बालकों को राम, लक्ष्मण का अभिनय सिखाकर जोड़ियाँ भी तैयार करते थे| उन्हीं देवेश जी ने सन्तकुमार जी को लक्ष्मण के अभिनय से सम्बन्धित साहित्य प्रदान किया था| जिसे आपने कुछ ही दिनों में याद कर लिया और विद्यालय के साप्ताहिक सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुत भी करने लगे| इसी बीच मिश्र जी की भेंट पं.रूपराम त्रिपाठी से हो गयी| त्रिपाठी जी उस समय रामलीला का मण्डल चलाते थे| अतः आप पं.रूपराम जी के मण्डल में लक्ष्मण का अभिनय करने के लिए जाने लगे| इनके साथ भरुआ-सुमेरपुर निवासी वर्तमान समय के प्रतिष्ठित व्यास पं.शिवनारायण द्विवेदी राम का अभिनय करते थे| इन लोगों का अभिनय धनुषयज्ञ से पहले ताड़का वध आदि की लीला में ही होता था| धनुषयज्ञ की लीला में रूपराम जी के पुत्र पं.श्यामसुन्दर त्रिपाठी तथा पं.रामचन्द्र त्रिपाठी को राम-लक्ष्मण बनाया जाता था| लगभग दो वर्ष यही क्रम चला| इस बीच आपका सम्पर्क उस समय के ख्याति प्राप्त रामलीला व्यास पं.वंश गोपाल ‘विदु’ से हो गया| विदु जी ने लक्ष्मण परशुराम संवाद की तैयारी में अकेला जी का विशेष सहयोग किया| एक बार संयोग से पं.रूपराम त्रिपाठी के ही कार्यक्रम में धनुषयज्ञ के दिन उनके दोनों पुत्र किसी करणवश पहुँच नहीं पाए| अतः सन्तकुमार जी को धनुषयज्ञ के दिन भी लक्ष्मण बनने का अवसर प्राप्त हो गया| उसके बाद धीरे-धीरे आपका नाम चर्चा में आने लगा| इसी बीच विदु जी ने आपका सम्पर्क उस समय के चर्चित मंडलाधीश पं.रामबरन जी से करवा दिया और आप रामबरन जी की मण्डली के स्थायी लक्ष्मण अभिनेता हो गये| 05 अक्टूबर सन 1962 को जब अभिनय के दौरान पं.शिवदत्त अग्निहोत्री ने सन्त कुमार जी के फरसा मार दिया तब से आप और भी अधिक चर्चा में आ गये| अकेला जी के हाजिर जवाब और तीखे संवादों से परशुराम अभिनेता अक्सर परेशान हो जाते थे| इस कारण बहुत से परशुराम अभिनेता इनके साथ अभिनय करने से कतराने लगे थे| सन 1973 के लगभग आपने अपना मण्डल खोल लिया तथा परशुराम अभिनेताओं के विरोधवश धीरे-धीरे लक्ष्मण का अभिनय करना कम कर दिया| चूंकि आप सातों काण्ड की रामलीला में लक्ष्मण का अभिनय करते थे| अतः आपको पूरी लीला का ज्ञान था| इसलिए एक दिन से लेकर पन्द्रह दिनों तक की लीला का मंचन आपके निर्देशन में सफलतापूर्वक सम्पन्न होने लगा| धीरे-धीरे आप एक सफल मंडलाधीश एवं आल राउंडर कलाकार के रूप में प्रतिष्ठित हो गए| लेकिन कुछ मंच ऐसे थे जहाँ आपको लक्ष्मण परशुराम संवाद में लक्ष्मण का अभिनय करने के लिए जाना ही पड़ता था| वर्ष 2005 में आपने रामलीला से पूरी तरह सन्यास ले लिया और कानपुर शहर के जुही गढ़ा में मिठाई की दुकान खोल ली| पं.सन्तकुमार मिश्र न केवल एक कुशल अभिनेता रहे बल्कि एक अच्छे कवि भी हैं और ‘अकेला’ के नाम से रचनायें करते हैं| अपने समय के चर्चित जनक अभिनेता एवं कीर्तन कलाकार रहे यश शेष विमल जी के साथ आप जवाबी कीर्तन में लेखक के रूप में भी जाते रहे हैं| इसके अलावा आपने श्रीराम, लक्ष्मण, परशुराम तथा अन्य विभिन्न पात्रों के लिए भी बहुत से गीत, कवित्त आदि की रचना की है| जो कि आज भी रामलीला मंचों से बोले जाते हैं| मिश्र जी के छै छोटे भाई भी इनका अनुकरण करते हुए रामलीला क्षेत्र में आ गये थे लेकिन बाद में प.रतन मिश्र को छोड़कर शेष सब लोगों ने दूसरा रोजगार अपना लिया| मिश्र जी ने अपने साले पं.प्रेम शंकर अवस्थी ‘बब्बू’ को भी रामलीला से जोड़ा था| बब्बू जी ने बाद में बहुत ही सफल राम अभिनेता के रूप में ख्याति अर्जित की| अकेला जी मूल रूप से चौबेपुर के निकट ग्राम बिरोहा के निवासी हैं और वर्तमान समय में कानपुर शहर के जुही गढ़ा में अपना आवास बनाये हुए हैं| प्रस्तुत है पं.सन्तकुमार मिश्र उर्फ़ मुन्ना ‘अकेला’ से उनकी अभिनय यात्रा तथा रामलीला के विभिन्न सन्दर्भों पर 23 मई 2018 को हुई विशेष बातचीत:

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डॉ.दीपकुमार शुक्ल

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