Published On Oct 5, 2019
1959 की फिल्म “गूँज उठी शहनाई” अमिता और राजेंद्र कुमार के करिअर में एक Milestone साबित हुई. पर उससे ज्यादा गूँज वसंत देसाईं जी के संगीत की उठी और शायद उससे भी ज्यादा गूँज इस देश में सुनाई दी उसकी शहनाई की जिसे बजाया शहनाई के सबसे बड़े उस्ताद या एकमात्र शहंशाह उस्ताद बिस्मिल्ला खां साहब ने. खां साहब ने शहनाई को शादी के छोटे से मंडप से निकालकर इस देश के हर संगीत प्रेमी के दिल में पहुँचाया.
21 मार्च 1916 को बिहार के छोटे से गाँव में जन्मे खां साहब का असली नाम था कमरुद्दीन खान. बनारस उनका ननिहाल था जहां वो पले बड़े हुए और जीवन की अंतिम सांस तक रहे. शिया पंथ, जहां संगीत वर्ज्य है, का होने की वजह से वो गंगा घाट के तट पर स्थित मंदिरों में बजाते थे जिसे वो अपनी “सात सुरों की नमाज़” अदा करना कहते थे. काशी का विश्वनाथ मंदिर उनके लिए एक अहम श्रद्धास्थान था. 15 अगस्त 1947 को लाल किले के स्वतंत्रता समारोह में उन्हें शहनाई की प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया गया. फिर ये एक सालाना custom बन गया जो 2005 तक नॉन-स्टॉप चला. 21 अगस्त 2006 को उनका इन्तेकाल हुआ और मरने के कुछ पहले उन्होंने किसीसे अपने दिल की टीस बताई की इस साल वो तबियत की वजह से स्वतंत्रता समारोह में अपनी शहनाई नहीं बजा सके. 2001 में उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
दोस्तों, ये मेरी खुस्किस्मती है की मैं उन खुस्किस्मत लोगों में से हूं जिन्होंने खां साहब को नागपुर में Live सुना (1977). एक-डेढ़ महीने बाद मेरी इंजीनियरिंग की फाइनल परीक्षा होते हुए भी मैंने वो मौका नहीं गंवाया. तीन मिनट के गीत “दिल का खिलौना हाए टूट गया” को उस प्रोग्राम में उन्होंने करीब 12-14 मिनट तक इतना तल्लीन होकर बजाया और ऐसा बजाया की लोगों की बस धडकनें रुकनी बाक़ी थीं. आज 42 साल भी जब उस धुन को याद करता हूं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
संगीतकार है वसंत देसाईं जी. गीतकार है पंडित भारत व्यास जी और गाया है रूहानी आवाज़ की सम्राज्ञी लता दीदी ने.