Parmarthik Swarth 6/8 पारमार्थिक स्वार्थ-भाग 6/8
Radha Govind Mandir, Chandigarh Radha Govind Mandir, Chandigarh
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 Published On Mar 27, 2020

.       ★ पारमार्थिक स्वार्थ ★

जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज 
             द्वारा स्वरचित पद
 'जोइ स्वारथ  पहिचान,  धन्य  सोइ'
                 की व्याख्या
               लेक्चर भाग-6

वैधी भक्ति में श्रीकृष्ण की महिमा के ज्ञान से प्रवृत्ति होती है
'महिमज्ञान युक्तः', 
श्रीकृष्ण के माहात्म्य को, उनकी ऐश्वर्य को सुना
और प्रवृत्ति हुई, शास्त्रों के द्वारा।
और रागानुगा में केवल भीतर से लोभ हुआ
श्याम मिलन की कामना हुई, ये रागानुगा भक्ति।
वैधी भक्ति में ऐश्वर्य का चिंतन होता है।
और ये भय रहता है, ओ! शास्त्र में लिखा है
श्रीकृष्ण भक्ति नहीं करोगे तो नरक मिलेगा
चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा।
नरक में क्या होता है?
अरे! नरक में अट्ठाइस प्रकार उनतीस प्रकार के नरक में
वो भयानक भयानक...भागवत में लिखा है, पढ़ लेना।
अरे! तब तो श्रीकृष्ण भक्ति करना चाहिये।
मोक्ष मिलेगा, रसगुल्ला।
तो, ये सब शास्त्र के बातों को सुनकर 
जिसके प्रवृत्ति हो श्रीकृष्ण भक्ति की, 
उसका नाम वैधी भक्ति।
यानी डरकर और मोक्ष आदि की लालच में।
और, अगर किसी को रागानुगा भक्ति का महापुरुष मिल गया
और उसने समझा दिया, 
कि इतना लम्बा-चौड़ा नाटक करो, 
फिर भी आगे loss है, हानि है
तुम तो श्रीकृष्ण के हो, श्यामसुन्दर तुम्हारे हैं, 
नेचुरल हैं, सहज स्नेही हैं, बनाना नहीं है उनको।

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