Published On Mar 27, 2020
. ★ पारमार्थिक स्वार्थ ★
जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
द्वारा स्वरचित पद
'जोइ स्वारथ पहिचान, धन्य सोइ'
की व्याख्या
लेक्चर भाग-8
ये सारे महापुरुष और भगवान
सब प्रकार के कर्म कर रहे हैं
राजस, तामस, सात्विक सब प्रकार के।
ये कैसे करते हैं?
कैसे ही करते हों बाबा,
लेकिन ये क्यों करते हैं, हम तो ये पूछते हैं।
ये क्यों करते हैं? इसका उत्तर सीधा-सा है
क्या?
दूसरे के उपकार के लिये।
बैठे-बैठे क्या करें? बोर हो रहे हैं।
वो अपने गुरु के ऋण से उऋण होना चाहते हैं।
हमारे गुरु ने हमको प्रेमानन्द दिया
अगर वो ना देते तो हम
अनादिकाल के जैसे रंक थे वैसे ही रंक रहते
जैसे अज्ञानी थे, वैसे ही अज्ञानी रहते।
तो अगर हम ये आनन्द औरों को ना दें
अकेले भोगते रहें,
तो ये कृतज्ञता नहीं होगी, ये तो कृतघ्नी का धर्म हो गया।
इसलिये महापुरुष लोग करते हैं।