Published On Jun 23, 2023
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⚡ आचार्य प्रशांत कौन हैं?
अध्यात्म की दृष्टि कहेगी कि आचार्य प्रशांत वेदांत मर्मज्ञ हैं, जिन्होंने जनसामान्य में भगवद्गीता, उपनिषदों ऋषियों की बोधवाणी को पुनर्जीवित किया है। उनकी वाणी में आकाश मुखरित होता है।
और सर्वसामान्य की दृष्टि कहेगी कि आचार्य प्रशांत प्रकृति और पशुओं की रक्षा हेतु सक्रिय, युवाओं में प्रकाश तथा ऊर्जा के संचारक, तथा प्रत्येक जीव की भौतिक स्वतंत्रता व आत्यंतिक मुक्ति के लिए संघर्षरत एक ज़मीनी संघर्षकर्ता हैं।
संक्षेप में कहें तो,
आचार्य प्रशांत उस बिंदु का नाम हैं जहाँ धरती आकाश से मिलती है!
आइ.आइ.टी. दिल्ली एवं आइ.आइ.एम अहमदाबाद से शिक्षाप्राप्त आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं।
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वीडियो जानकारी: 27.05.23, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
जिस तन लगिआ इश्क कमाल, नाचे बेसुर ते बेताल टेक।
दरदमन्द नूं कोई न छेड़े, जिसने आपे दुःख सहेड़े, जम्मणा जीणा मूल उखेड़े, बूझे अपणा आप खिआल ।
जिसने बेस इश्क दा कीता, घुर दरबारों फतवा लीता, जदों हजूरों प्याला पीता, कुछ ना रह्या सवाल जवाब ।
जिसदे अन्दर वस्स्या यार, उठिया यार ओ यार पुकार, ना ओह चाहे राग न तार, एवं बैठा खेडे हाल |
बुल्हिआ शाह नगर सच पाया, झूठा रौला सब्ब मुकाया, सच्चियां कारण सच्च सुणाया, पाया उसदा पाक जमाल ।
जिसे प्रभु से पूर्ण प्रेम हो जाता है, वह आनन्दमय मस्ती में आकर बेसुर और बेताल नाचने लगता है ।
उस वेदना भरे जीव को कोई क्या तंग करेगा, जिसने स्वयं अपने लिए दुःख संजो लिए हैं। दुःखों को वरण करनेवाला जन्म और मरण को उखाड़ फेंकता है, और वह अपनी हस्ती को स्वयं पहचान लेता है।
जिसने प्रभु प्रेम को जीवनधार बना लिया है, उसे स्वयं आदिसत्ता से आदेश प्राप्त होने लगते हैं। जब स्वयं आदिसत्ता के हाथ से प्रेम का प्याला पिया हो तो उस अवस्था में किसी प्रकार की दुविधा के लिए स्थान ही नहीं रहता ।
जिसके हृदय के अन्दर उसका यार बस जाता है, तो वह आपा भूलकर यार-ही- यार पुकार उठता है । जब रोम-रोम में प्रिय की ध्वनि गूंजने लगे तब फिर किसी बाहरी राग अथवा ताल की चाह ही नहीं रह जाती और वह अनायास मिलन-सुख में डूबकर नाचने लगता है।
बुल्लेशाह कहता है कि प्रिय (मुर्शिद) के नगर में ही सच प्राप्त हुआ है। प्रियतम के नगर को देखने के बाद तो संसार के सारे झूठे शोर समाप्त हो जाते हैं। यह परम सत्य मैंने उन लोगों के लिए कहा है जो सच्चे हैं, और जिन्हें उसके परम प्रेममय पवित्र रूप सौन्दर्य का दर्शन हो चुका है।
संगीत: मिलिंद दाते
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