Din Dhal Jaaye Haae Raat Na Jaaye-Karaoke
Ravindra Kamble Ravindra Kamble
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 Published On Mar 18, 2021

1965-66 में नवकेतन फिल्म्स के बैनर तले बनी “गाईड” के निर्माता थे देवानंद और निर्देशक थे विजय आनंद उर्फ़ गोल्डी. जब विजय आनंद जी ने फिल्म की कहानी सुनी तो परेशान हो गए. उन्होंने फिल्म को direct करने से डॉ बार मना कर दिया, देव आनंद ने बड़ी मुश्किल से तीसरी बार उन्हें मनाया. “गाईड” देव आनंद जी की पहली रंगीन फिल्म थी.

पिछली फिल्म “तीन देवियाँ” की सफलता से उत्साहित गोल्डी और देवानंद जी ने उसी जोड़ी याने सचिनदेव बर्मन और हसरत जयपुरी को इस फिल्म के लिए चुना. (वैसे उस ज़माने में अगर सचिन देव बर्मन उपलब्ध हैं तो नवकेतन की फिल्म में किसी और का संगीत नहीं हो सकता था. केवल “हम दोनों” अपवाद रही जहां जयदेव जी ने संगीत दिया). एक दो गीत बनाने के बाद जब प्रस्तुत गीत “दिन ढल जाए हाए रात न जाए ...” की बारी आई तो हसरत जयपुरी जी ने मुखड़ा लिखने की शुरुवात की. पहली लाइन लिखी “दिन ढल जाए हाए रात न जाए ...”. पता नहीं क्यूँ विजय आनंद और देव साहब को मुखड़े की ये लाइने पसंद नहीं आईं. देर रात तक दोनों हसरत जयपुरी जी को लाइन बदलने के मनाते रहे, पर व्यर्थ. हसरत जी को गीतकार की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया. फिर दोनों सचिनदा के पास गए . सचिनदा ने छूटते ही कहा “हम तो शुरू से ही बोलता था कि अगर कोई गाईड का गाना लिख सकता है तो वो सिर्फ़ शैलेन्द्र”. देव साहब और गोल्डी ने कहा तो बुलाइए फिर शैलेन्द्र जी को. सचिनदा ने तभी कॉल किया. शलेन्द्र जी ने आधी रात का हवाला देते हुए बाद में आने की बात कही. सचिनदा ने दोस्ती का वास्ता देते हुए उन्हें बुला ही लिया. शैलेन्द्र जी के आने पर उन्हें सारी सिचुएशन समझाई गई. शैलेन्द्र जी तो बहुत मायूस हुए कि वो पहली पसंद नहीं थे और उन्हें हसरत जी के replacement के तौर पर लिया गया है.

शैलेन्द्र जी ने ठान लिया कि वो इस फिल्म के गीत नहीं लिखेंगे. मगर सचिनदा को मना कैसे करें. सो उन्होंने एक रास्ता निकाला की उनकी फीस बहुत ज्यादा होगी. देव साहब और गोल्डी ने जब पूछा कितनी तो जो रक़म उन्होंने बताई वो बहुत ही ज्यादा थी (आज के हिसाब से करोड़ों में). देव साहब और गोल्डी ने एक सेकंड एक दूसरे की तरफ देखा और तुरंत हां कर दी. अब शैलेन्द्र जी के पास कोई चारा नहीं रह गया. उसी समय उन्होंने गीत लिखने का काम शुरू कर दिया और सुबह होते होते उन्होंने ये गीत तैयार कर लिया जो दोनों आनंद भाइयों को भी पसंद आया. और मज़े की बात तो ये कि जिस लाईन की वजह से हसरत जयपुरी जी की छुट्टी कर दी गई थी उस लाईन को शैलेन्द्र जी ने बिना बदले वैसा ही रखा. और रफ़ी साहब ने गायकी की ऐसी अदायगी की कि आज भी इस गीत का जादू सर चढ़ कर बोलता है.

मोहम्मद रफ़ी साहब के बेमिसाल गीतों में से एक.

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