Published On Apr 29, 2020
“चिराग़” (1969) मदन मोहन जी की राज खोसला साहब के साथ तीसरी फिल्म थी. उससे पहले की “वो कौन थी” (1964) और “मेरा साया” (1966) में बहुत ही hit और आला दरजे का संगीत देकर मदन जी ने खुद की अपेक्षाएं बढ़ा ली थीं. मगर 1969 आते आते फिल्म संगीत का स्वरुप थोडा बदलने लगा था. मदन जी के जोड़ीदार गीतकार राजा मेहेदी अली खां जी का इन्तेकाल होने की वजह से उन्हें काफी सालों बाद मजरूह सुलतानपुरी जी के साथ काम करने का मौका मिला. नए challenge को स्वीकारते हुए मदन जी ने बहुत मेहनत की और “चिराग़” का भी संगीत आला दरजे का दिया. मगर फिल्म को दर्शकों का प्यार नहीं मिला. अपनी इतनी मेहनत से बनाए संगीत को फिल्म न चल पाने की वजह से कामयाबी नहीं मिलने से मदन जी काफी मायूस हुए.
मदन जी कई बार एकाध धुन मिनटों में compose कर लेते थे. “तेरी आँखों के सिवा...” शायद ऐसी ही एक रचना थी. मदन जी शब्दों पर या शायरी पर बहुत ज़ोर देते थे. अगर शायरी उन्हें पसंद नहीं आई तो कागज़ गीतकार को ये कहकर लौटा देते..थोड़ी और कोशिश कीजिए साहब. जब “तेरी आँखों के सिवा...” की रिकॉर्डिंग मुकम्मल हुई तो मदन जी इतने खुश हुए की तुरंत स्टूडियो की तरफ लपके और मजरूह साहब की पुरज़ोर तारीफ़ की. मगर तारीफ़ का अंदाज़ बड़ा गजब का था. मजरूह साहब के पेट पर हलके हलके इतने सारे मुक्के मारते गए. मजरूह जी ठहरे शायर वो भी सुलतानपुर के.. वो परेशान थे की ये तारीफ़ हो रही या सज़ा मिल रही है. फिर मदन जी बोले ‘चलिए मेरे घर.. आज मैं अपने हाथों से खाना बनाकर आपको खिलाता हूं’. ऐसे थे मदन जी. जितनी मिठास दिल में थी वो गीतों के रूप में बाहर आती थी.. रफ़ी जी का गाया गीत happy version है ज़बकी लता जी का गीत sad version है. मोहम्मद रफ़ी साहब ने इसे बेहद दिलकश अंदाज़ में गाया है.
रफ़ी साहब के चाहने वालों के लिए एक और नजराना....