Published On Premiered May 4, 2021
धार्मिक जीवन में परिवर्तन- पश्चिमीकरण के प्रभाव से भारत में 19वीं शताब्दी में एक व्यापक समाज सुधार आरम्भ हुआ। पश्चिमी संस्कृति के मानवतावाद और सामाजिक समानता से प्रभावित होकर यहाँ आर्य समाज, ब्रह्म समाज और रामकृष्ण मिशन जैसी सुधार संस्थाओं की स्थापना हुई। पश्चिमी जीवन के अनुसार ही यहाँ. भूत-प्रेत, शकुन-अपशकुन, भाग्य सम्बन्धी विचारों, बेकार के कर्मकाण्डों तथा धार्मिक विश्वासों पर आधारित अस्पृश्यता, सती प्रथा, बाल-विवाह और देव-दासी प्रथा जैसी कुरीतियों का विरोध बढ़ने लगा। मानव सेवा को ईश्वर की सच्ची सेवा के रूप में देखा जाने लगा है ।
2. जाति व्यवस्था में परिवर्तन- पश्चिमीकरण की प्रक्रिया सामाजिक समानता और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को अधिक महत्व देती है। इसके प्रभाव से जाति से सम्बन्धित सामाजिक सम्पर्क, छुआछूत, खान-पान, व्यवसाय तथा विवाह से सम्बन्धित बहुतसी कुरीतियों का प्रभाव समाप्त होने लगा।
3. सांस्कृतिक व्यवहारों में परिवर्तन- पश्चिमीकरण के प्रभाव से हमारे खान-पान, वेशभूषा, व्यवहार के तरीकों तथा उत्सवों के आयोजनों में व्यापक परिवर्तन हुआ है। परम्परागत उत्सवों की जगह अब ऐसी पार्टियों को अधिक महत्व दिया जाता है जिनमें धर्म पर आधारित किसी तरह के आडम्बर का समावेश नहीं होता।
4. शिक्षा-प्रणाली में परिवर्तन- स्वतन्त्रता के बाद परम्परागत शिक्षा व्यवस्था की जगह वैज्ञानिक और व्यावसायिक शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाने लगा। इसके फलस्वरूप नयी पीढ़ी की मनोवृत्तियों और विचारों में परिवर्तन हो जाने से मनुस्मृति में दिये गये धर्म और संस्कृति सम्बन्धी व्यवहारों का विरोध बढ़ने लगा।
5. विवाह संस्था में परिवर्तन- पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से समाज में विलम्ब विवाह का प्रचलन बढ़ा, बहुपत्नी विवाह का विरोध बढ़ने के कारण इसे कानून के द्वारा समाप्त कर दिया गया, सम्भ्रान्त परिवारों में दहेज की प्रथा समाप्त हो गयी, अन्तर्जातीय विवाहों में वृद्धि होने लगी, बहिर्विवाह और कुलीन विवाह के नियम कमजोर पड़ गये तथा स्त्री को किसी भी तरह के उत्पीड़न की दशा में अपने पति से विवाह-विच्छेद कर लेने का अधिकार मिल गया।