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सबैटिकल ( ६ महीने की साहित्यिक-यात्रा के अंतिम पड़ाव पर लिखी कविता )
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281 views • 4 years ago
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नालंदा ( वो लम्हा जब नालंदा का विध्वंस हुआ )
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298 views • 4 years ago
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एक ख़बर का सफ़र
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138 views • 4 years ago
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बच्चे गली में अब खेला नहीं करते
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316 views • 4 years ago
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आकाशी मोड़ (यादों की एक शाम का रंग)
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269 views • 4 years ago
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बच्चों को फूलों सा तू ज़रा प्यार कर ( गेंद मस्ज़िद की मंदिर से खेलें कभी, खेल ऐसा भी साथी अविष्कार कर)
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166 views • 4 years ago
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उड़ान (है साज़िशों में ज़मीं आसमाँ निशाना है, परों को तेज़ करो ख़्वाब को बचाना है)
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392 views • 4 years ago
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सरहद (कल रात, गोलियाँ चली थीं सरहद पे)
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151 views • 4 years ago
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गिला है क़ातिलों से बस के शर्मसार क्यों नहीं (एक गज़ल)
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144 views • 4 years ago
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दहशत - एक वायरस से सहमा शहर कैसा होता है ?
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113 views • 4 years ago
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बापू, आपका ग़रीब आदमी मिल गया ! (एक व्यंग्य - लॉकडाउन में ग़रीब आदमी की हालत पर बापू के साथ फ़ोन कॉल)
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86 views • 4 years ago
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पलायन ( लॉकडाउन में अपने घर जाते, लाखों मज़दूरों का दर्द )
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बापू, देखो लोग कोरोना-विसर्जन पर निकल पड़े (जनता-कर्फ्यू/ लॉकडाउन पर बापू के साथ फ़ोन कॉल- एक व्यंग्य)
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74 views • 4 years ago
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आज दफ़्तर बंद है चल ज़िन्दगी बातें करें-Ghazal Sung On Tune Of Hoshwalon Ko Khabar Kya/होशवालों को ख़बर
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बहुत है रात काली एक उजला सा ख़लल डालो (शहर )
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159 views • 4 years ago
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बच के रहना, बापू ! ( कोरोना वायरस पर महात्मा गाँधी के साथ एक फ़ोन कॉल )
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157 views • 4 years ago
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उड़ें हैं हम भले पर पंख ये तुम्हारे हैं
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मैंने आपका नमक खाया है, बापू ( A Phone Call With Mahatma Gandhi / एक संवाद - महात्मा गाँधी के साथ)
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ये जो हिन्द है, ये सभी का है, ये सभी दिलों की हीं जान है
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अगर दिल हों परेशाँ तो बदल कर नाम क्या होगा
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इक बुझी बुझी सहमी सी सहर की आदत थी
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तुम अब भी तन्हा बैठे हो, ये साथी अच्छी बात नहीं
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अभी शहर हमारा ज़िंदा है - एक कविता (चाहे जो हो, ना-उम्मीद मत हो / Don't Loose Hope)
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चल वोट करें / Let's Vote - Every Vote Counts
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286 views • 5 years ago
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लो फिर से आये तिरंगों में (#पुलवामा आतंकी हमला / #Pulwama Terror Attack)
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ख्यालों का सफ़र (अंतर्यात्रा | An Inner Journey)
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अवध - आख़िर वो लम्हा कैसा था, जब राम वनवास से वापस लौटे?
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गोडसे - आख़िर वो लम्हा कैसा था, जब बापू को गोली लगी?
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वीकेंड ( बाज़ार | कॉर्पोरेट अनुभव से जुड़ी कवितायें )
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फाँसी - आख़िर वो लम्हा कैसा था, जब भगत सिंह को फाँसी हुई ?
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