योगवासिष्ठ । वैराग्य प्रकरण । मानव शरीर अवस्थाए - बाल्यावस्था, युवावस्था, वृधावस्था एवं स्त्री शरीर.
सनातन तत्त्वज्ञान सनातन तत्त्वज्ञान
610 subscribers
1,061 views
47

 Published On Oct 1, 2024

।। सनातन तत्त्वज्ञान ।।

योगवासिष्ठ । वैराग्य प्रकरण । Part - 12
मानव शरीर अवस्थाए - बाल्यावस्था। युवावस्था। वृधावस्था एवं स्त्री शरीर की आरमणीयता का निराकरण ।
-------------------------
।। श्री परमात्मने नमः ।।
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।

योगवासिष्ठ वेदांत दर्शन के प्रमुख प्रमाणित ग्रंथों में से एक है, जिन्हें प्रस्थानत्रयी कहा जाता है, इनमे उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र, और श्रीमद्भगवद्गीता सम्मिलित हैं, साथ ही योग वसिष्ठ को भी इसका हिस्सा माना जाता हैं। यह ग्रंथ वैदांतिक ज्ञान का अद्वितीय खजाना है और सनातन हिंदू धर्म में इसे आध्यात्मिक साहित्य के सबसे महान कार्यों में से एक माना जाता है।

योगवासिष्ठ संस्कृत भाषा में लिखा गया एक बृहद् और प्राचीन दार्शनिक ग्रंथ है, जिसमें लगभग बत्तीस हजार (32,000) से तैंतीस हजार (33,000) श्लोक शामिल हैं। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे योगवासिष्ठमहारामायण, महारामायण, आर्षरामायण, वासिष्ठरामायण, और ज्ञानवासिष्ठ।

यह ग्रंथ अत्यंत आदरणीय है, क्योंकि इसमें किसी विशेष संप्रदाय का उल्लेख नहीं है, और इसका अध्ययन पूरे भारत में सदियों से मूल और अनुवाद दोनों रूपों में किया जा रहा है।

जैसे भागवत पुराण और रामचरितमानस का महत्व भगवद्भक्तों के लिए है, और भगवद्गीता का महत्व कर्मयोगियों के लिए है, उसी प्रकार योग वसिष्ठ का महत्व ज्ञानियों के लिए है। इस ग्रंथ में विभिन्न पाठकों के लिए सामग्री उपलब्ध है; जहाँ अबोध बालक इसकी कहानियाँ सुनकर आनंदित होते हैं, वहीं विद्वान इसके गहन दार्शनिक सिद्धांतों का आनंद लेते हैं।

यह एक अद्भुत ग्रंथ है जिसमें काव्य, उपाख्यान, और दर्शन का संपूर्ण आनंद मिलता है। यह श्रुतियों का सार और माण्डूक्यकारिका का विस्तृत व्याख्यान है। योग वसिष्ठ का अध्ययन आत्मज्ञान, वैदांतिक शिक्षा, और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाले साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह जीवन की गहरी समझ और योग के विभिन्न पहलुओं को विकसित करने में सहायक है, जो व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है।

show more

Share/Embed