आओगे तो तुम भी राम के पास ही || आचार्य प्रशांत, रामायण पर (2018)
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वीडियो जानकारी: शब्दयोग सत्संग, 18.03.2018, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा, भारत

प्रसंग:

प्रभु का रूप अतुल्य है

मन्दोदरी ने रावण से कहा, “यदि तुम्हें सीता को पाने की इतनी ही इच्छा है, तो तुम उसके पास राम का रूप धारण करके क्यों नहीं चले जाते?” तुम तो मायावी हो, माया का इतना उपयोग तो कर ही सकते हो। रावण ने उत्तर दिया, “राम का चिन्तन भी करता हूँ, तो भी इतनी गहन शांति मिलती है कि उसके बाद कहाँ छल कर पाऊँगा?” रावण कह रहा है कि मैं रावण सिर्फ़ तभी तक हूँ, जब तक मैंने राम को ख़ुद से ज़बर्दस्ती दूर कर रखा है। राम की यदि छाया भी मेरे ऊपर पड़ गयी, तो मैं रावण रहूँगा ही नहीं।

~ बोध कथा

बोधकथा का सार क्या है?
क्या माया भी राम के पास ही ले जाती है?
राम के पास पहुँचने के कौन-कौन से मार्ग हैं?
मन में राम को कैसे बसाएँ?
क्या सभी जीवों के ह्रदय में राम का ही वास है?

संगीत: मिलिंद दाते
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