Published On Jul 24, 2024
महोदय, छोटी कक्षाओं में श्रुतलेख में त्रुटियों के सुधार के लिए हर गलत शब्द को कई बार लिखवाकर अभ्यास करवाया जाता है। ऐसे अभ्यास से हर काम में महारत हासिल करने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। सद्गुरु कहते हैं, 'जब भी आप कोई अभ्यास इच्छापूर्वक करते हैं, वह काम आपके लिए बेहद सुखद बन जाता है। जब कभी लगे कि हार मान लो, तो एक उम्मीद रहती है कि थोड़ा और अभ्यास कर लो। महज इसी से बाजी पलट // है। मेरी राय में, 'आप कई बार झुकते हैं, कई बार टूटते हैं। फिर अभ्यास जारी रखने के बाद एक * बेहतर आकार ले लेते हैं। इस भरोसे कतई नहीं रहना चाहिए कि उम्र अपने साथ महारत भी लेकर आएगी। जीने की तरह अभ्यास करते जाना सकारात्मक प्रक्रिया है। महान भौतिकीविद् ने कभी कहा था, मैं अपनी असफलताओं का मालिक हूं, अगर मैं कभी असफल न हुआ होता, तो इतना कुछ कैसे सीख पातार कुछ पाने के लिए अभ्यास करना ही // पड़ता है। मेरी 12वीं की परीक्षा और मेरे मैच साथ-साथ चल रहे थे। मुझे पेपर देने थे, फिर ट्रेन पकड़कर मैच खेलने जाना था, और मैच खेलकर लौटना भी था। लेकिन दुविधा थी कि पिता जी को कैसे बताऊं? खैर,* बड़ी हिम्मत करके मैंने पिताजी को बताया, तो उन्होंने समझाया कि बेटा, अगर तुमने साल भर मेहनत की होगी, तो एक दिन से फर्क नहीं पड़ेगा, और अगर साल भर मेहनत नहीं की होगी, तब भी एक दिन में कोई फर्क // नहीं पड़ने वाला। यानी मंजिल पाने लिए अभ्यास में निरंतरता होनी चाहिए। इसीलिए आप सभी को भी इन बातों पर ध्यान दे कर अपनी काम पूरी ईमानदारी से करना चाहिए नहीं तो अन्त में असफलात आप का स्वागत करने के लिए आप के सामने है। अपनी समझ को हमेशा सकारात्मक रखें।
महोदय, पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों * में हर वर्ग के लोग अपनी पसंद के उम्मीदवारों का चुनाव कर रहे हैं। लेकिन देखने में यह भी आता है // कि जहां-तहां चुनावी बहस गरम हो जाती है और आम लोग आपस में ही उलझ जाते हैं। हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि हम चाहे जिस किसी पार्टी के समर्थक हों, आपसी भाईचारा न बिगड़ने पाए। राजनीतिक पसंद के कारण आपस में वाद-विवाद से बचना चाहिए, क्योंकि आपसी भाईचारा देश की शांति-व्यवस्था को मजबूत करता है। सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन हमें मिलकर रहना है। यह समझ से परे है कि राजनीतिक पार्टियों के लिए हम आपसी सौहार्द //* को खराब करें। चुनावी माहौल में जातिगत व क्षेत्रीय दुर्भावना से दूर रहना ही श्रेयस्कर है, तभी लोकतंत्र के उत्सव का हम आनंद ले लेलेते हैं ल्द ट्रेन 'सकेंगे। (425 Words)