Published On Oct 28, 2023
भगवान श्रीराम की आज्ञा से हनुमान जी लन्का में गए और वहाँ उन्हें जब भूख लगी तो वे वृक्षों के फलों को खाकर उन वृक्षों को भी उखाड़कर फेंकने लगे। जब असुरराज रावण को इस बात का पता चला तो उसने अपने सबसे छोटे पुत्र अक्षयकुमार को हनुमान जी को रोकने भेजा। लेकिन हनुमान जी ने अक्षयकुमार को युद्ध में मार डाला। अपने छोटे भाई की मृत्यु से क्रोधित होकर रावण के बड़े पुत्र मेघनाद ने हनुमान जी को युद्ध में बन्दी बनाया और असुर नरेश रावण के दरबार में ले गया जहाँ रावण ने हनुमान जी की पूंछ को जला दिया लेकिन हनुमान जी ने अपनी जलती हुई पूंछ से सोने की लन्का को ही जला कर राख कर दिया। आग की गर्मी से हनुमान जी को पसीना आ गया और उस पसीने को एक मछली ने खाद्य समझकर ग्रहण कर लिया जिससे वह मछली गर्भवती हो गई। एक दिन वह मछली पाताल लोक जा पहुँची जहाँ अहिरावण और महिरावण के सेवकों ने उस मछली के पेट को चीर दिया जिसमें एक शिशु निकला जिसके शरीर का ऊपरी हिस्सा वानर का और निचला हिस्सा मछली का था। उसके बल से प्रभावित होकर अहिरावण और महिरावण ने उसे पाताल का द्वारपाल नियुक्त किया था।
रावण के कहने पर उसके भाई अहिरावण और महिरावण भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को पाताल ले गए जहाँ वे उन दोनों की बलि देने को तैयार हुए। हनुमान जी पाताल लोक में जा पहुंचे। वहाँ उन्हें एक रक्षक दिखाई दिया जो आधा वानर और आधा मछली था। हनुमान जी ने जब पाताल में प्रवेश किया तो उस परहरी ने उन्हें रोकते हुए कहा कि वे भगवान शन्कर के अवतार हनुमान जी के पुत्र हैं और हनुमान जी ने उन्हें बताया कि वे ही हनुमान हैं तो मकरध्वज ने अपने पिता को प्रणाम किया और उन्हें भीतर जाने दिया। भीतर जाते ही हनुमान जी ने पन्चमुखी रूप लिया (यह गरुड़ , नरसिंह , हयग्रीव और वराह का मिश्रित रूप था) और उन पाँच दीयों को एक साथ बुझाया जिसमें अहिरावण और महिरावण के प्राण स्थित थे। उनके मरते ही हनुमान जी ने अपने पुत्र मकरध्वज की मुलाकात भगवान श्रीराम से करवाई और उन्हें धर्म की राह पर चलने की प्रेरणा दी और साथ ही मकरध्वज को पाताल का राजा नियुक्त किया और वापिस युद्ध क्षेत्र में आ गए।