HIMALAYAN HIGHWAYS| "लाटू देवता मंदिर" परम्पराएं और इतिहास, सुनिए पुजारियों की जुबानी| UTTARAKHAND
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 Published On Dec 8, 2022

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हिमालयन हाइवेज।HIMALAYAN HIGHWAYS

हिमालय की खूबसूरत वादियों में बसा वाण गांव और इसी वाण गांव की जमीन पर आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक लाटू देवता धाम

इष्टदेवी माँ नन्दा को कैलाश का रास्ता बताते हुए अगुवाई करते है धर्मभाई लाटू देवता

लाटू मंदिर वाण में पौराणिक समय से ही कई धार्मिक रीति रिवाज जीवनशैली का हिस्सा है और आज भी स्थानीय लोग इन्ही रीति रिवाजों के साथ लाटू देवता की पूजा करते है।

लाटू मंदिर के अंदर प्रवेश की इजाजत सिर्फ मुख्य पुजारी को है जो सदियों से चली आ रही परम्पराओं को पौराणिक तरीके से ही सम्पन्न करते है।


चमोली जनपद के सुदूर में स्थित है देवाल विकासखण्ड और इसी विकासखण्ड में स्थित है वाण गांव। बुग्यालों से घिरे वाण गांव में स्थित है माँ नन्दा के धर्मभाई लाटू देवता का पौराणिक मंदिर। माँ नन्दा और लाटू देवता धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाई बहन है और विकट कैलाश पर्वत की यात्रा के दौरान लाटू देवता ही अगुवानी करते है। हर साल वाण गांव में लाटू देवता के मंदिर में कपाट खोलने और बंद करने की परंपरा रही है। इस साल भी मौका था लाटू देवता मंदिर के कपाट बंद होने का। धार्मिक रीति रिवाजों के अनुसार सदियों से चली आ रही यह प्रथा स्थानीय लोगों की मौजूदगी में सम्पन्न की जाती है। आज के इस एपिसोड में हम आपके लिए लेकर आये है लाटू धाम में कपाट बंद होने की भावुक तस्वीरे साथ में लाटू देवता मंदिर से जुड़ी अहम जानकारियां। इन सबके साथ वाण गांव में धार्मिक आयोजन में स्थानीय लोगों की सहभागिता।


भादों के महीने हर वर्ष उत्तराखंड के सुदूर में इष्टदेवी मां नन्दा को ससुराल के लिए विदा किया जाता रहा है। अलग अलग पड़ावों से होते हुए मां नन्दा की डोली अपने कैलाश प्रस्थान से पहले पहुंचती है आखिरी गांव वाण में। वाण गांव को मां नन्दा का विशेष स्नेह हासिल है। दरअसल वाण गांव में मां नन्दा के धर्मभाई लाटू देवता का मंदिर है और यहां से नन्दा डोली की अगुवाई लाटू देवता ही करते है। मां नन्दा ओर लाटू देवता से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं है और इन धार्मिक मान्यताओं को आज भी पूरी आस्था के साथ आगे बढ़ाया जाता है। स्थानीय लोगों के मुताबिक लाटू देवता और मां नन्दा की सर्वप्रथम भेंट वाण गांव में ही हुई थी जिसके बाद मां नन्दा ने उन्हें धर्मभाई बनाया।

वाण गांव में लाटू देवता मंदिर के कपाट हर साल बैसाख के महीने में खोले जाते है और मंगशिर के महीने की पूर्णमासी के दिन कपाट बंद होते है। कपाट बंद होने के समय लाटू देवता के पुजारी पूजा पाठ के साथ कपाट बंद करते है। स्थानीय पुजारियों के मुताबिक लाटू देवता की पूजा के दौरान मंदिर के अंदर सिर्फ मुख्य पुजारी ही प्रवेश करते है। इस दौरान मुख्य पुजारी अपने मुंह को कपड़े से ढके रखते है। लाटू देवता से जुड़े कुछ पूजा पाठ के नियमों को अलग अलग तरीकों से भी प्रचारित किया जा रहा है जिसको लेकर मुख्य पुजारी नाराज भी नजर आते है।

लाटू धाम में कपाट बंद होने के बाद भी पूजा पाठ और भेंट का सिलसिला जारी रहता है। मंदिर परिसर में स्थित मुख्य मंदिर के बाहर स्थापित मंदिर में ये पूजा निरन्तर जारी रहती है। बैसाख महीने की पूर्णमासी को कपाट खोलने के वक्त यहां बड़ी संख्या में लोग जमा होते है और लाटू देवता का आशीष लेते है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक लाटू देवता मंदिर में दूर दूर से लोग अपनी मन्नत लेकर पहुंचते है। कपाट बंद होने के समय यहां स्थानीय लोग पहुंचते है साथ ही गांव के लिए प्रसाद बनाया जाता है।

वाण गांव में धार्मिक आयोजनों का अपना अलग ही अंदाज नजर आता है। पारम्परिक वेशभूषा में यहां पहुंचने वाले स्थानीय लोग हर आयोजन में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज कराते है। प्रसाद तैयार करने की जिम्मेदारी ग्रामीणों की होती है और बड़े आयोजनों के समय बाहर से आये यात्रियों को भी स्थानीय लोग ही भोजन तैयार करते है।


मां नन्दा के धर्मभाई लाटू देवता से वाण गांव का सम्बंध अतीत से चला आ रहा है और वक्त बीतने के साथ ये सम्बन्ध ज्यादा मजबूत और गहरा नजर आता है। लाटू देवता मंदिर के कपाट बंद होने के बाद भी यदि आप लाटू धाम जाना चाहते है तो जा सकते है साथ ही मंदिर परिसर में पूजा पाठ भी लगातार जारी रहती है।

आज के एपिसोड में इतना ही। लाटू देवता के धाम से जुड़ा यह एपिसोड आपको कैसा लगा कृपया कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखिये साथ ही चैनल को भी सब्सक्राइब कीजियेगा

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