ओम् (ॐ) क्या है? ओम् से लाभ क्या? ओम् का आदि-अंत क्या? || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2024)
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 Published On Premiered Mar 2, 2024

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वीडियो जानकारी: 18.02.24, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:

माण्डूक्य उपनिषद्

ओमित्येतदक्षरमिदं सर्वं तस्योपव्याख्यानं
भूतं भवद्‌ भविष्यदिति सर्वमोङ्कार एव।
यच्चान्यत्‌ त्रिकालातीतं तदप्योङ्कार एव ॥1॥

श्लोक सार: ‘ॐ’ यह अक्षर ही सबकुछ है। सब उसकी ही व्याख्या है। भूत, भविष्य, वर्तमान सब ॐकार ही हैं

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सोऽयमात्माध्यक्षरमोङ्कारोऽधिमात्रं पादा मात्रा
मात्राश्च पादा अकार उकारो मकार इति ॥8॥

श्लोक सार: वह आत्मा ॐकार ही है। जिसके चार चरण हैं (अ) अकार, (उ) उकार, (म) मकार, और तुरीय।

जागरितस्थानो वैश्वानरोऽकारः
प्रथमा मात्राऽऽप्तेरादिमत्त्वाद्
वाऽऽप्नोति ह वै सर्वान्
कामानादिश्च भवति य एवं वेद ॥9॥

श्लोक सार: जाग्रत स्थान वाला वैश्वानर ही (अ) अकार है।

स्वप्नस्थानस्तैजस उकारो द्वितीया
मात्रोत्कर्षात् उभयत्वाद्वोत्कर्षति
ह वै ज्ञानसन्ततिं समानश्च भवति
नास्याब्रह्मवित्कुले भवति य एवं वेद ॥10॥

श्लोक सार: स्वप्न स्थान वाला तैजस ही (उ) उकार है।

सुषुप्तस्थानः प्राज्ञो मकार-
स्तृतीया मात्रा मितेरपीतेर्वा
मिनोति ह वा इदं
सर्वमपीतिश्च भवति य एवं वेद ॥11॥

श्लोक सार: सुषुप्ति स्थान वाला प्राज्ञ ही (म) मकार है।

अमात्रश्चतुर्थोऽव्यवहार्यः
प्रपञ्चोपशमः शिवोऽद्वैत
एवमोङ्कार आत्मैव संविशत्यात्मना-
ऽऽत्मानं य एवं वेद ॥12॥

श्लोक सार: ॐ के बाद जो है वह चतुर्थ है। शिव, अद्वैत, ॐकार रूप वह आत्मा है।

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संत कबीर

जीवन थैं मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ।
मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ॥

जीते जी मरना अच्छा है, जो असली मृत्यु जानता हो। मरने के पहले जो मर जाता है, वह अजर-अमर हो जाता है।

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अष्टावक्र गीता

नोद्विग्नं न च सन्तुष्टमकर्तृस्पन्दवर्जितम्।
निराशं गतसन्देहं चित्तं मुक्तस्य राजते ॥18.30॥

श्लोक सार - जीवन मुक्त पुरुष के मन में न उद्वेग होता, न संतोष होता। न कर्ताभाव का विष होता, न आशा या संदेह उसे सताते।
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शिव गीता (Chapter 8)

जठरानलसंतप्ताः पित्ताख्यरसविप्रुषः।
गर्भाशये निमग्नं तु दहन्त्यतिभृशं तु माम् ॥8.28॥

श्लोक सार - सबसे पहले प्राणी माँ के गर्भ की अग्नि से पीड़ित होता है।

औदर्यक्रिमिवक्राणि कूटशाल्मलिकण्टकैः।
तुल्यानि च तुदन्त्यार्तंपाश्र्वास्थिक्रकचार्दितम्॥8.29॥

श्लोक सार - गर्भ में रहने का दुख काँटों के चुभने के समान होता है।

गर्भे दुर्गन्धभूयिष्ठे जठराग्निप्रदीपिते।
दुःखं मयाप्तं यत्तस्मात्कनीयः कुम्भपाकजम् ॥8.30॥

श्लोक सार - गर्भ की दुर्गन्ध और अग्नि का दुख, नरक के दुख से भी बढ़कर है।

पूयासृक्छलेष्मपायित्वं वान्ताशित्वं च यद्भवेत्।
अशुचौ कृमिभावश्च तत्प्राप्तं गर्भशायिना ॥8.31॥

श्लोक सार - मल, मूत्रादि में रहने से गर्भ में स्थित प्राणी कीड़ा समान ही हो जाता है।
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~ अ,उ,म के केंद्र में अहम है और अहम सीमित है।
~ ऊँकार अनंंत है और अनंत की कोई सीमा नही होती है।
~ ऊँकार अहम की शांत से अनंत की ओर यात्रा है।
~ ऊँकार का अर्थ है जो कुछ भी भौतिक है उसे पीछे छोड़ते जाना।
~ ऊँ का मतलब है कि तुम्हे जन्म इसलिए नही मिला है कि तुम मृत्यु तक पहुँच जाओ अपितु इसलिए मिला है कि अमरता तक पहुँच जाओ।

ॐ का अर्थ क्या है?
ॐ से होने वाले लाभ क्या हैं?
क्या मात्र ॐ का जाप करने से मनोकामनाएँ पूरी होती हैं?
ॐ का आदि क्या? अंत क्या?

संगीत: मिलिंद दाते
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