4 yugo ki kahani
Vidhi Patidar Vidhi Patidar
3.95K subscribers
56 views
0

 Published On Jul 22, 2024

चारों युगों का वर्णन इस प्रकार है:

सत्य युग (सतयुग):यह प्रथम युग है और इसे "स्वर्ण युग" भी कहा जाता है।इस युग में धर्म का प्रतीक होता है और चारों पैर (सत्य, दया, तप, और दान) पर खड़ा होता है।लोग सत्यवादी, धर्मशील और दीर्घायु होते हैं।इस युग में दैवी शक्तियों और ऋषि-मुनियों का वास होता है और हर जगह शांति और समृद्धि होती है।

त्रेता युग:यह दूसरा युग है और इसमें धर्म के तीन पैर होते हैं, क्योंकि एक पैर गिर चुका होता है।इस युग में दानव और असुरों का प्रकोप बढ़ने लगता है।भगवान राम का जन्म इस युग में होता है और रामायण की कथा इसी युग से जुड़ी है।लोग तप, यज्ञ, और ध्यान द्वारा धर्म का पालन करते हैं।

द्वापर युग:यह तीसरा युग है जिसमें धर्म के केवल दो पैर बचे होते हैं।इस युग में अधर्म का प्रभाव बढ़ जाता है और संघर्ष, युद्ध और अन्याय की घटनाएँ बढ़ती हैं।भगवान कृष्ण का जन्म इसी युग में होता है और

कलियुग:यह चौथा और वर्तमान युग है, जिसे "लोहे का युग" भी कहा जाता है।इस युग में धर्म का केवल एक पैर बचा होता है।अधर्म, पाप, और अज्ञानता का प्रभाव सबसे अधिक होता है।लोग स्वार्थी, क्रोधी, और असत्यवादी हो जाते हैं।धर्म का पालन कठिन हो जाता है और समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास होता है।

इन चारों युगों में समय के साथ धर्म और नैतिकता का ह्रास होता है, और अधर्म और अराजकता का प्रभाव बढ़ता है। कलियुग के अंत में, भगवान विष्णु के कल्कि अवतार के आगमन की भविष्यवाणी की जाती है, जो अधर्म का नाश करेंगे और सत्य युग की पुनः स्थापना करेंगे।

show more

Share/Embed