श्री राघवाचार्य द्वारा भागवत कथा: सातवां स्कंध (कांड) भाग 2
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श्री राघवाचार्य द्वारा भागवत कथा: सातवां स्कंध (कांड) भाग 2

सातवें स्कंध में कुल 15 अध्याय हैं। इस स्कंध का मुख्य विषय अधर्म पर धर्म की विजय और भगवान की भक्ति का महत्त्व है। इसमें मुख्य रूप से हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद की कथा का वर्णन है, जो धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, और भगवान के प्रति अटूट भक्ति की गाथा है।

विषयवस्तु:
हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद की कथा: इस स्कंध की केंद्रीय कथा हिरण्यकशिपु और उसके पुत्र प्रह्लाद की है। हिरण्यकशिपु एक अत्यंत शक्तिशाली और अहंकारी असुर था, जिसने भगवान विष्णु से शत्रुता पाल ली थी। वह अपने आपको अमर समझता था और भगवान की पूजा को निषिद्ध कर दिया था। लेकिन उसके पुत्र प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी। प्रह्लाद की भक्ति इतनी अटूट थी कि हिरण्यकशिपु की कई यातनाओं के बावजूद वह अपने धर्म से नहीं डिगा।

नरसिंह अवतार: हिरण्यकशिपु द्वारा अत्यधिक उत्पीड़न के बाद, भगवान विष्णु ने अपने भक्त की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार धारण किया। इस अवतार में वे आधे मानव और आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु का वध किया। इस घटना से यह संदेश मिलता है कि जब-जब अधर्म अपने चरम पर पहुँचता है, तब भगवान अवतरित होकर धर्म की स्थापना करते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

धर्म और अधर्म: इस स्कंध में धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष और अंततः धर्म की जीत का वर्णन है। यह भी बताया गया है कि भक्ति, श्रद्धा, और भगवान पर अटूट विश्वास ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है।

वैदिक शिक्षा: इसमें यह भी बताया गया है कि भगवान की भक्ति कैसे व्यक्ति को अधर्म और पापों से बचाती है और मोक्ष की ओर ले जाती है। प्रह्लाद की कथा के माध्यम से बच्चों और युवाओं को धर्म, सच्चाई और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी गई है।

संदेश:
सातवां स्कंध यह सिखाता है कि भगवान अपने सच्चे भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों। धर्म का मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन उसका अंत सदैव विजय में होता है। अधर्म और अहंकार का नाश अवश्यंभावी है।
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