vihangam yog sankat mochan | विहंगम योग संकट मोचन | संकट मोचन
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 Published On Jul 9, 2020

#विहंगमयोगसंकटमोचन
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#संकटमोचन
।। श्री सद्गुरु-चरण कमलेभ्यो नमः।।

सत्यभाव

करुणामय करुणीक

ज्ञान और विज्ञान

॥संकटमोचन प्रारम्भ ।।

(दोहा)
संकट मोचन नाम है, सद्गुरु बन्दीछोर।
विघ्न विपत्ति दुःखनाश का, अशरण शरण अंजोर ।I19 ।
दीनबन्धु आरत हरण, प्रणतपाल मम देव।
आश्रय नाथ अनाथ का, आस एक जन सेव।।२।। (चौपाई)
सत्य सुकृत दुख भंजन मेरा।
चेतन कृत नाम गम तेरा।।
सत्य भाव सत्य कृत तुम्हारा।
गह गह गम्य गगन धर धारा।।
मननशील मुनि राजप साजे।
सर्व तत्त्वज्ञ मुनीन्द्र विराजे।।
करुणामय करुणीक दयामय।
रक्षक जीव ताप दुःख जगमय।।
ज्ञान और विज्ञान स्वरूपा।
चिद् भण्डार धाम कवि भूपा।।

अजन्मा अज अचल अमोघा।
संत सनातन समरस बोधा।।
शुद्ध बुद्ध अरु मुक्त स्वरूपा।
सृष्टि प्रलय सम अद्भुत रूपा।।
चेतन ज्योति प्रकाश प्रकाशे।
ध्यात्म क्षेत्र रवि तुम भासे।।
ब्रह्मविद्या है आप मयूखा।
पूर्ण प्रकाश कलामय उखा।।
(दोहा)
आत्म भूमि जगभूमि में, और भूमि तिनपाद।
गमन करो तिन भूमि में, अत्रि भनत श्रुतिवाद ।३।। (चौपाई )
सन्त सनातन सतत विराजो।
नित्य अनादि गुरु सब पर गाजो।।
आदि अनादि सन्त मत तेरा।
शरणागत मिल युक्ति घनेरा।।
मानव रूप अमानव देवा।
ऋषि मुनि देव करें सब सेवा।।
कहिं नभ वाणी कर उपदेशा।
कहीं आतम बिच कर परवेशा।।
संत रूप कहिं दर्शन दीन्हा।
अनुरागी शरणागत लीन्हा।।
संशय मोह शोक सब नाशा।
दिव्यज्ञान निज जन परकाशा।।
चारों युग संसार पधारे।
सारशब्द ध्वनि आप उचारे।।
ब्रह्मविद्या है किरण तुम्हारा।
भानुरूप सद्गुरु मम प्यारा।
सब ग्रन्थन है ज्ञान तुम्हारा।
घट घट व्यापक नाम अपारा।।
(दोहा)
सब सन्तन के सन्तपति, सब पूजित सब पार।
पालक दीन अधीन का, सब दुःख देव संहार।।४।।
प्राकृत रूप आप नहिं होइ।
निर्मित करता के नहीं सोई।
स्व इच्छा बहुरूप सँवारा।
जहँ इच्छा तहवाँ पग धारा।।
हंस जाहि तुम दर्शन दीन्हा।
सद्गुरु पद पाया जग लीन्हा।।
स्वाती श्रुतज्ञान तव पाया।
देव छाप वर जगत पुजाया।।
अमित ज्ञान गुण अमित प्रकाशा।
अमित कर्म सत चेतन भाषा।।
सारे हंस प्रकाश विकाशे।
आरत जीव क्लेश तुम नाशे।।
कर्म गुणन परम स्तुति कीन्हा।
अमित अनन्त अपारहिं चीन्हा।
सब गुरु जन पर गुरुवर स्वामी।
पाहि पाहि जन भेद अनामी।
(दोहा)
सबके आगे नाम तव, सब देवों का देव।
आभा आब विशाल है, राख भाव जन सेवा ।५
(चौपाई)
अमित बार जग रचना होई।
अमित सृष्टि परलय भय सोई।।
अमित कल्प कल्पान्तर आवे।
मन्वन्तर बहु आय जनावे।।
अमित बार युग चारों बीते।
द्यौ पृथ्वी रवि शशि गये क्षीते।।
ब्रह्मा अमित बार तन धारे।
विष्णु अमित तन जगत पधारे।।
अमित बार शिव जन्मेउ आई ।
तिरदेवा बहु जन्म नशाई।।
राम कृष्ण बहु प्रकटे आई।
अमित निरंजन होय होय जाई।।
बकदल्लभ अधिक ऋषि जेते।
मृत्युञ्जय परलय रह केते।।
गुरुवर लीला सबकर देखा।
जन्म विनाश सबन कर पेखा।।
अजर अमर अविनाशी देवा।
अज अद्वैत अनामय भेवा।।

(दोहा)
अमित सृष्टि परलय गये, लीला विविध प्रकार।
सतत एक सम रहत हो, गुरुवर देव हमार।।६
(चौपाई)
नहिं कोइ आदि अन्त तव पाई।
चार वेद महिमा तव गाई।।
कवि कोविद विज्ञान विशारद ।
ऋषि मुनि देव मनुज तव गुणवद।।
अद्भुत रूप अनन्त अनादी।
कर्म गुणन परमारथ वादी।।
सिर मौली शिरताज विभाजा।
आदि अनादि सकल गुरु राजा।।
जहँ सुमिरे तहँ प्रकटे आई।
अद्भुत लीला दृश्य दिखाई।।
सर्व प्रकार काम जग सारा।
विघ्न उपद्रव नाश प्रचारा।।
आरत दीन शान्ति तहँ पावें।
मन वचन काया तव गुण गावें।।
भूरि रूप बहु भूमि दिखावें।
भय आश्चर्य लोक सब आवे।।
अंतर आभा जग फैलावे ।
सर्व शान्ति उर अन्तर पावे।।
(दोहा)
जगत गुरू का बोध है, निश्चय भय विश्वास।
महिमा अपरम्पार है, केवल सद्गुरु आश।७।।
(चौपाई)
महावीर को बोध कराया।
लक्ष्मण गरुण देव समझाया।।
बलखशाह को केल दिखाया।
सप्त बार रावण बल खाया।।
ऋषि मुनि योगी बहु उपदेशा।
गणना कौन काज तव वेशा।।
अमित सृष्टि परलय के माहीं।
अमित जीव बोधा जग माहीं।।
तुम तो एक एक गुरुदेवा।
जगत अनन्त जीवन कर सेवा।।
तुमहीं आदि तुमहिं हो अन्ता।
तुमही मध्य एक रस सन्ता।।
तुमहीं से सब ज्ञान पसारा।
तुमहीं केवल जीव अधारा।।
गुरुवर तुम सम और न देखा।
तुम गुरु माता पिता सब पेखा।।
जो चाहो सो कीजे काजा।
जनकर लाज राख महाराजा।।
गति अनन्य जन जानते, जग सौंपा परचार।
दीन 'सदाफल' शरण में, वेगि शान्ति पथ चार ।।८
विघ्न उपद्रव शान्त कर, क्षेत्र पवित्र बनाव।
दीन 'सदाफल' निमित्त है, सुखद शान्ति जग पाव।।६। (चौपाई)
मम वाणी है सत्य स्वरूपा।
परम प्रकाश मिटे भवकूपा।।
पंचभूत मम साक्षी आहीं
महिरस अगिन मरुत नभ पाही।।
सत्य सत्य वह देहि प्रकाशा।
झूठ मोह तम करें विनाश ।।
जड़ साक्षी साक्षी का रूपा।
जड़ चेतन आश्रित जेहि रूपा ।।
सोइ मम रूप निरंतर वासा।
अन्तर्यामी अमृत पासा।।
मम भाषण पर कवन सफाई।
पंचभूत मय देहि बताई।।
रावण राज्य कर्म नय झूठा।
शासन स्वारथ चर गति लूठा।।
न्याय धर्म कर भया विनाशा।
भक्त व सज्जन गया उदासा।।
आत्मसमर्पित भय जन नाही।
अभय प्रताप महाबल माहीं।।
(दोहा)
संचालक संसार का, अक्षर अन्तर देव।
आरत नाद विनीत जन, प्रभु शरणागत लेव।।१०।
भक्त माँग कछु है नहीं, योग क्षेम प्रभु कीन्ह।
प्रणपालक जन साथ है, चातक गति जन लीन्ह।।११।
(चौपाई)
न्यायालय जन शोभा नाहीं।
सर्व तत्त्वज्ञ पूज्य जग माही।।
पर अपरा गति अनुभव पाहीं।
सो जन कोट कौन विधि जाही।।
साक्षी पूरण पुरुष पुराना।
नाद गगन व्यापक जग जाना।।
गह गह गड़ गड़ अद्भुत नादा।
भूमण्डल अमृत श्रुत वादा।।
सद्गुरु वर्ण व देव मिलाई।
पहिली वाणी जग ध्वनि आई।।
जगत गुरु दूसर स्वर वादा।
वर्ण देव अमृत रस स्वादा।।
यह अभियोग झूठ सब जानो।
मौगा मौगी दुष्ट पिछानो।।
प्राकृत अरु आध्यात्मिक राजा।
भूशासक पर ज्योति विराजा।।
विषय चार भूमण्डल छाई।
राजनीति गति प्र५।।
(चौपाई)हुआ।

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