Published On Nov 14, 2022
pushkar mandir
पुष्कर मेला 2022 -
अक्टूबर 31 (सोमवार) से नवंबर 09 (बुधवार)
पुष्कर का नाम मन में आते ही दो चीजें सबसे पहले दिमाग में आती हैं। पहली तो ब्रह्मा जी का मंदिर और दूसरा यहां का मेला। यूं तो मेले पूरे देश में कहीं ना कहीं रोज लगते हैं।
ब्रह्मा मन्दिर एक भारतीय हिन्दू मन्दिर है जो भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर ज़िले में पवित्र स्थल पुष्कर में स्थित है। इस मन्दिर में जगत पिता ब्रह्माजी की मूर्ति स्थापित है। इस मन्दिर का निर्माण लगभग १४वीं शताब्दी में हुआ था जो कि लगभग ७०० वर्ष पुराना है। यह मन्दिर मुख्य रूप से संगमरमर के पत्थरों से निर्मित है।
पशुओं के मेले भी लगते हैं, लेकिन #पुष्कर में जो मेला लगता है उसकी बात ही अलग है। यहां ऊंटों का मेला लगता है और ये मेला इतना मज़ेदार होता है कि लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। मेले की शुरूआत कार्तिक पूर्णिमा के दिन होती है। इस बार ये मेला अक्टूबर 31 (सोमवार) से नवंबर 09 (बुधवार) को खत्म होगा।
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#पुष्कर मेला कई सालों से लगता आ रहा है और राजस्थान सरकार इसके लिये विशेष अनुदान भी देती है। ये मेला रेत पर कई किलोमीटर तक लगता है। खाने पीने से लेकर, झूले, नाच गाना सब यहां होता है। पुष्कर मेले में हज़ारों की संख्या में विदेशी सैलानी भी पहुंचते हैं। अधिकतर सैलानी राजस्थान सिर्फ इस मेले को देखने ही आते हैं। सबसे अच्छा नज़ारा तब दिखता है जब मेले के ऊपर से गर्म हवा के रंग बिरंगे गुब्बारे उड़ते हैं। इन गुब्बारों में बैठकर ऊपर से मेला और भी भव्य दिखता है।
क्या होता है मेले में?
ये खासतौर पर ऊंटों और पशुओं का मेला होता है। पूरे राजस्थान से लोग अपने अपने ऊंटों को लेकर आते हैं और उनको प्रदर्शित किया जाता है। ऊंटों की दौड़ होती है। जीतने वाले को अच्छा खासा इनाम भी मिलता है। पारंपरिक परिधानों से ऊंट इस तरह सजाए गए होते हैं कि उनसे नज़र ही नहीं हटती। सबसे सुंदर ऊंट और ऊंटनी को भी इनाम मिलता है। ऊंटों की सवारी करवाई जाती है। यही नहीं ऊंटों का डांस और ऊंटों से वेटलिफ्टिंग भी करवाई जाती है। ऊंट नए नए करतब दिखाते हैं। नृत्य होता है, लोक गीत गाए जाते हैं और रात को अलाव जलाकर गाथाएं सुनाई जाती हैं।
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कार्तिक पूर्णिमा
पुष्कर मेला कार्तिक पूर्णिमा को शुरू होता है और पुष्कर की #झील में नहाना, #तीर्थ करने के समान माना गया है। इस दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु झील में डुबकी लगाकर, ब्रह्मा जी का आशीर्वाद लेकर मेले में खरीद फरोख्त करते हैं। पूरा दिन और शाम को पारंपरिक नृत्य, घूमर, गेर मांड और सपेरा दिखाए जाते हैं। शाम को आरती होती है। इस आरती को शाम के वक्त सुनना मन को काफी शांति देती है।
कैसे पहुंचें पुष्कर ?
अगर आप हवाई मार्ग से जाना चाहते हैं तो जयपुर एयरपोर्ट तक आ सकते हैं। इससे आगे 140 किलोमीटर की दूरी बस या टैक्सी से कर सकते हैं। ट्रेन से आना चाहते हैं तो कई ट्रेनें अजमेर तक चलती हैं और अजमेर से पुष्कर सिर्फ 11 किलोमीटर है।
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पुष्कर #मेला #राजस्थान का सबसे मशहूर फेस्टिवल है। रेत में सजे-धजे ऊंटों को करतब करते हुए देखने का एक्सपीरियंस ही अलग है। इस मेले में आकर आप कला और संस्कृति के अनूठा संगम देख सकते हैं। हालांकि इस बार लंपी चर्म रोग के फैलने के कारण यहां के फेमस पशु मेले के बिना ही आठ दिन का कार्यक्रम आयोजित किया गया है।
ट्रेडिशनल और फ्यूजन का संगम
इस मेले में अलग-अलग प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। मेले में ट्रेडिशनल और फ्यूजन बैंड भी अपनी परफॉर्मेंस का प्रदर्शन करेंगे। इसके अलावा मेले में टेस्टी डिशेज और सुंदर शिल्प कौशल भी प्रदर्शित किया जाएगा।
सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की यज्ञस्थली और ऋषि-मुनियों की तपस्थली तीर्थगुरु पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है. रूष्ट हुई पत्नी के श्राप के कारण ही देशभर में ब्रह्माजी का इकलौता मंदिर पुष्कर में है. पुष्कर सरोवर की उत्पत्ति भी स्वयं ब्रह्माजी ने की. जिस प्रकार प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को पुष्कर राज कहा जाता है. ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं. यह तीनों पुष्कर ब्रह्मा जी के कमल पुष्प से बने. पुष्कर में ही कार्तिक में देश का सबसे बड़ा ऊंट मेला लगता है, जिसमें देशी-विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में आते हैं.
साम्प्रदायिक सौहार्द्र की नगरी अजमेर से उत्तर-पश्चिम में करीब 11 किलोमीटर दूर पुष्कर में अगस्त्य, वामदेव, जमदाग्नि, भर्तृहरि इत्यादि ऋषियों के तपस्या स्थल के रूप में उनकी गुफाएं आज भी नाग पहाड़ में हैं. पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्माजी का मंदिर बना है. आदि शंकराचार्य ने संवत् 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी. मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने 1809 ई.में बनवाया था. यह मंदिर देश में ब्रह्माजी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है. मंदिर के पीछे रत्नागिरि पहाड़ पर जमीन तल से दो हजार तीन सौ 69 फुट की ऊँचाई पर ब्रह्माजी की प्रथम पत्नी सावित्री का मंदिर है.
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