Published On Dec 16, 2021
बैरासकुण्ड महादेव मंदिर || एक रहस्य || रावण के अंगुलीयो के निशान आज भी मौजूद
बैरास कुण्ड नंदप्रयाग उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में स्थित है जहाँ पर पानी का कुण्ड, यज्ञ स्थल, रावण शिला और मनोरम प्राकृतिक सौन्दर्य उपस्थित है यह स्थान ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महवपूर्ण है जो की रामायण से एवं ऋषि वशिष्ट से सम्बन्ध रखता है यह वही स्थान है जहाँ पर रावण ने अपनी इच्छाये पूरी करने के लिये तप किया और अपने दसों सिरों की आहुतियाँ दि थी |
: शिव ही संसार का आदि और अंत है। देवभूमि को शिव का निवास माना जाता है। यहां शिव के कई धाम हैं, इन्हीं में से एक धाम है चमोली जिले के नंदप्रयाग में बसा बैरास कुंड महादेव जहां भगवान शिव का मंदिर है। कहा जाता है कि यहीं रावण ने अपने दस सिर काटकर अपने आराध्य भगवान शिव को समर्पित किए थे। इस इलाके को पहले दशमौलि के नाम से जाना जाता था जो कि बाद में दशौली के रूप में मशहूर हुआ। रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए बैराश कुंड महादेव मंदिर में तपस्या की थी, जिसका उल्लेख केदारखंड और रावण संहिता में भी मिलता है। बैरास कुंड महादेव मंदिर उत्तराखंड के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है। इस जगह का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा बताया जाता है। मान्यता है कि त्रेता युग में लंकापति रावण ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए यहीं पर तपस्या की थी।
लेकिन जब कठोर तप के बाद भी महादेव के दर्शन नहीं हुए तो रावण ने यहीं मौजूद हवन कुंड में अपने दस सिरों की आहूति दे दी थी। मंदिर के ठीक सामने पौराणिक कुंड भी बना हुआ है। जिसके जल से महादेव का जलाभिषेक किया जाता है. मंदिर प्रांगण में एक विशाल हवन कुंड भी स्थित है। जिन दस स्थानों पर रावण ने अपने सिर रखे, उन स्थानों को दसमोली कहा जाता है. जिसके चलते इस गांव की पूरी पट्टी का नाम दशोली पड़ा है। महाऋषि वशिष्ठ ने भी इस स्थान पर तप और अाराधना कर महादेव को प्रसन्न किया था. मंदिर प्रांगण में आज भी रावण का पौराणिक हवन कुंड मौजूद है। मंदिर के पास रावण शिला भी मौजूद है, जिस पर रावण की अंगुलियों के निशान हैं। आप भी यहां दर्शनों के लिए चले आइए। धन्य है देवभूमि और धन्य हैं यहां के पवित्र धाम।
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