Yaad Kiya Dil Ne Kahaan Ho Tum-Karaoke
Ravindra Kamble Ravindra Kamble
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 Published On May 27, 2024

Song : Yaad Kiya Dil Ne Kahaan ho Tum
Film : Patita (1953)
Music : Shankar Jaikishan
Lyrics : Hasrat Jaipuri
Singer : Lata Mangeshkar/Hemant Kumar

निर्माता निर्देशक अमिया चक्रवर्ती की फिल्म “पतिता” (1953) एक पूरी Melodramatic फिल्म थी. प्रसिद्ध (मराठी) अभिनेत्री उषा किरण इस फिल्म की हीरोइन चुनी गईं. उषा किरण को हम उस वक़्त की एक सुंदर मगर सिंपल भारतीय सुन्दरता की मिसाल मान सकते हैं. भले ही उस के पहले से उषा जी और अमिया चक्रवर्ती की अच्छी मित्रता थी, मगर उषा जी ने फिल्म के किरदार के साथ पूरी तरह न्याय किया. पूरी फिल्म उषा किरण के किरदार के इर्द-गिर्द घूमती है. उषा जी की हिंदी की ये चौथी या पांचवीं फिल्म थी. और देव आनंद जैसे टॉप के हीरो के साथ पहली. (हांलाकि उससे पहले दिलीप कुमार जी के साथ “दाग़” में भी काम किया था पर वो रोल कुछ बड़ा नहीं था). फिल्म का संगीत शंकर जयकिशन जी ने रचा था और ज़्यादातर गीत शैलेन्द्र जी ने लिखे थे , सिवाय प्रस्तुत गीत “याद किया दिल ने कहां हो तुम..” को छोड़ कर, जिसे हसरत जयपुरी ने लिखा. फिल्म की सफलता को भले ही हम औसत कह सकते हैं पर फिल्म के सारे गीत बहुत लोकप्रिय हुए और आज भी हैं. “याद किया दिल ने..” के अलावा “किसीने अपना बना के मुझ को, मुस्कुराना सिखा दिया..”, “मिटटी से खेलते हो बार बार किस लिए..” (लता), “तुझे अपने पास बुलाती है तेरी दुनिया..” (तलत) और तलत महमूद जी का Iconic गीत “हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें, हम दर्द के सुर में गाते हैं..” जिस की प्रेरणा शैलेन्द्र जी को शायद इंग्लिश कवि Shelley की मशहूर कविता ‘Our sweetest songs are those that tell of the saddest thought’ से मिली थी.
उषा किरण की सुपुत्री तन्वी ने, मशहूर Cinematographer बाबा आज़मी (शबाना आज़मी के भाई) से विवाह कर के तन्वी आज़मी के रूप में फ़िल्मी दुनिया में पहचान हासिल की.
71 वर्ष की उम्र में सन 2000 में उषा किरण ने दुनिया को अलविदा कहा.
मेरा जन्म फिल्म रिलीज़ के 3 साल बाद हुआ. 1973 के उस वाक़ये को, जब मैं engineering की क्लास bunk करके, धूप में 15 Km साईकल चलाकर एक अति साधारण थिएटर में “पतिता” का मैटिनी शो देखने गया, 50 साल से ऊपर हो गए हैं. मगर देवानंद का वो बाजुओं और गर्दन को ढीला करके उचकाना, उषा किरण जी का dialogue बोलते समय वो तेजी से पलकें झपकाना, लता दीदी का “मिटटी से खेलते हो...” और तलत साहब की वो मधुर आवाज़ें ज़ेहन में आज भी वैसी ही ताज़ा हैं.

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