Lag Ja Gale Ke Phir Ye Haseen Raat-Karaoke
Ravindra Kamble Ravindra Kamble
44.9K subscribers
61,991 views
533

 Published On Dec 4, 2020

“वह कौन थी” (1964) राज खोसला और साधना जी की 4 रहस्यमय फिल्मो की कड़ी में दूसरी फिल्म थी. “एक मुसाफिर एक हसीना” (1962), “मेरा साया” (1966) और “अनीता” (1967) अन्य तीन फ़िल्में थीं. “वह कौन थी” का लाजवाब संगीत दिया था मदन मोहन जी ने, और बेमिसाल गीतों के शायर थे राजा मेंहदी अली खां साहब.

हालांकि ‘नैना बरसे ...” फिल्म का theme song था पर जो लोकप्रियता “लग जा गले .....” ने हासिल की उसका कोई सानी नहीं. मेरे ख़याल से इस गीत को हिंदी फिल्म के सबसे लोकप्रिय गीतों की list में टॉप 3 में आसानी से ज़गह मिलनी चाहिए. आज भी गीत संगीत की हर महफ़िल शायद इस गीत के बिना अधूरी सी लगती है. लता दीदी के पसंदीदा गीतों में से एक. खुद लता जी को देश विदेश के हर लाइव शो इस गीत को गाना लाज़मी हो जाता है. मगर क्या आप विश्वास करेंगे की इतनी महान रचना, इतने मधुर गीत से ये ज़माना और हम सब संगीत प्रेमी वंचित रह जाते अगर महान कलाकार मनोज कुमार जी ने इस गीत में दिलचस्पी नहीं दिखाई होती.

हुआ यूँ की मदन मोहन जी ने इस गीत की धुन बनाई तो अपनी ही रचना पर खुश हो गए. मगर जब राज खोसला जी को उन्होंने ये धुन सुनाई तो उन्होंने इसे रिजेक्ट कर दिया कि धुन में दम नहीं और रहस्यमयी माहौल से मेल नहीं खाती. मदन मोहन जी काफी निराश हुए. उन्होंने फिल्म के हीरो मनोज कुमार जी से बात की, जो फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखने की दोहरी भूमिका भी निभा रहे थे. मनोज जी ने वो धुन सुनी तो बेइंतेहा खुश हुए और आश्चर्यचकित भी कि इस धुन को राज खोसला जी ने कैसे नकार दिया. मनोज जी ने मदन जी को भरोसा दिया. उन्होंने राज खोसला जी से बात करके अगली संगीत बैठक तय की.पिछली धुन का ज़िक्र किए बिना इस बैठक में मदन जी ने “लग जा गले .....” की वही धुन दुबारा सुनाई. उसे सुनकर राज खोसला जी तो ख़ुशी से उछल पड़े और तुरंत OK कर दिया. बाद में जब असलियत उन्हें बताई गई तो वो बहुत शर्मसार होकर बोले “या तो मेरा ध्यान कहीं और होगा या शायद मुझ पर पागलपन छाया होगा जो मैंने इतनी उम्दा धुन को रिजेक्ट कर दिया.” गीत ने लोकप्रियता में जो इतिहास रचा वो हम सब जानते हैं. मगर गीत की सफलता में शायर राजा मेंहदी अली खां साहब के बोल, गीत का picturization और सबसे ऊपर लता दीदी की बेमिसाल मधुर और मुरकियों से भरी गायकी, इन चीज़ों का योगदान नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता.

लता दीदी इस गीत के सन्दर्भ में कहती हैं की “लग जा गले ..... ये एक कठिन गीत रचना थी. खासकर उन मुरकियों को देखते हुए जो मदन मोहन जी ने बताईं और कुछ हरकतें जो मैंने अपनी तरफ से लीं. उन दिनों एक गीत की रिकॉर्डिंग के लिए 4 घंटे मिला करते थे जिनमें musicians और गायक दोनों की गलतियों के रीटेक्स शामिल होते थे. रिकॉर्डिंग की तकनीक भी उतनी एडवांस नहीं थी. इन सबके बावजूद ये गीत आज भी इतना ताज़ातरीन (Fresh) लगता है की बार बार सुनने का मन करता है.”

ये सोचकर ही मेरे शरीर में झुरझुरी दौड़ जाती है कि अगर दूसरी बैठक में भी राज खोसला जी इस धुन को रिजेक्ट कर देते तो हम सभी संगीत प्रेमी इस अलौकिक अमर रचना से वंचित रह जाते.

show more

Share/Embed