सुहागिले पूजा विधि ll अवसान बीवी/संकटा माता की सुहागिले llsuhagle puja vidhi sankta mata ki suhagle
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 Published On Jun 6, 2023

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Suhagle puja vidhi
Sankta mata ki puja vidhi


सुहागिनें अपने सुहाग की रक्षा करने के लिए कई सारे व्रत रखती हैं और उन्हीं में से एक है सुहागिलें। सुहागिनों की पूजा करके पकवान खिलाना सुहागलें कहलाती हैं।

भारतीय महिलाओं की सबसे बड़ी समपत्ती उनका परिवार होता है। एक स्त्री का सुख उसके परिवार के सुख पर निर्भर करता है। भारतीय नारी दिन और रात बस यही कामना करती है कि उसकी संतान सुखी रहे, उसका सुहाग अमर रहे और इसी यत्न में क्या कुछ नही करती है। हर सुहागिन के लिए उसके पति, संतान और परिवार का सुख सबसे पहली प्राथमिक्ता होती है। वह भले ही अपने लिए कोई उपवास ना रखे लेकिन अपने परिवार की रक्षा के लिए ज़रूर रखती है। हरतालिका तीज, करवाचौथ, संतान सप्तमी, वट सावित्री आदी व्रत रख कर, अपने परिवार कि सुख सम्रद्धी की कांमना करती हैं। सुहागिनें अपने सुहाग की रक्षा करने के लिए कई सारे व्रत रखती हैं और उन्हीं में से एक है सुहागिलें। क्या होती है सुहागिलें ? सुहागिनों की पूजा करके उन्हें भोजन पकवान आदि खिलाना सुहागलें कहलाती हैं। प्रान्त या प्रदेश की भिन्नता से सुहागली पूजा में अंतर पाया जाता है और सुहागल माता को अनेक नामों से जाना जाता है- हर मुश्किल आसान कर देने वाली औसान माता बड़े संकटों का निवारण करने वाली संकटा माता कुदशा को सुदशा में बदलनेवाली...बिना किसी मनौती के होने वाली सुहागलों में चटपट माता की पूजा होती है। ये सभी माताऐं देवी लक्ष्मी का ही रूप हैं जो भिन्न भिन्न नामों से पूजी जाती हैं। इस पूजा को करने से पहले बहुत सी बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है।क्योकि एसा कहा जाता है कि सुहागिली माता की पूजा विधी विधान से पूरी ना होने पर माता रुष्ठ हो जाती हैं। पूजा की विधी - सुहागलों से एक दिन पहले ही सुहागनों को 7,14 की संख्या या मनौती के अनुसार सुहागनों को आमंत्रित किया जाता है सुहागलों में लाल या पीले रंग की साड़ी पहननी चाहिए, हरे नीले काले रंग के वस्त्र वर्जित हैं। पूजा में पान, बिना कत्थे का होना चाहिए चौक बनाकर उस पर गोल चौकी रखें पान के पत्ते पर सफेद चंदन से माता का चित्र अंकित कर छुई – (सफेद मिट्टी) के आठ टुकड़ों के साथ चौकी में रखें। पान के पत्ते में अंकित माता आदिशक्ति और छुई मिट्टी के आठ टुकड़े मिलाकर नौदेवी रूप विराजमान होती हैं। विधिवत माता की पूजा करके सुहागनों का भी पूजन करें। पूजन के बाद सुहागनों की ओली भरें और कथा सुनें सबसे पहले आनेवाली सुहागन को ही प्रथम ओली दी जाती है। ओली में एक पाव मिठाई और सवाया करने के लिए गुड़ और लाई चना या फिर पेड़ा का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कथा सुनने के बाद थोड़ी मिठाई, गुड़, छिले चने के दानें माता को चौकी में समर्पित किये जाते हैं। उसके बाद सुहागने ओली में दी गई मिठाई मौन हो कर खाती हैं। उसके बाद माता की चौकी में चढ़ा हुआ सुहाग और सिंदूर लेती हैं। आमंत्रित सुहागने पहले सिंदूर लेती हैं बाद में मनौती करने वाली सुहागन सिंदूर लेती है। सिंदूर लेने के बाद सुहागनें चौकी में रखे हुए उपहार तथा पान ग्रहण कर माता का विसर्जन करती हैं। माता को भेंट करके सभी सामग्री सहित जल में प्रवह करती हैं। इस पूजा को सारे सुहागिन महिलाएं पूरे श्रृंगार के साथ करते हैं माथे में सिंदूर टिकली मंगलसूत्र पैर में आलता लगाती है नवविवाहित जोड़े भी इस पूजा में सम्मिलित होते हैं

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