Paudiwala shiv mandir Nahan | PAHADI DNA
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 Published On Dec 26, 2020

सिरमौर जिला मुख्यालय नाहन...! देवभूमि हिमाचल के इस भूभाग में। शिव और शक्ति साक्षात वास करते हैं। प्राीचन शहर नाहन में कई शिवालय हैं। जिनमें रानीताल और कुमहार गली स्थित शिवालय प्रमुख हैं। इसी प्रकार नाहन के समीप पौड़ीवाला में। प्राचीन शिवालय विद्यमान है। जिसे स्वर्ग की दूसरी पौड़ी के नाम से जाना जाता है। इस शिवालय के बारे में कई प्रकार की मान्यताएं प्रचलित हैं।
लंकापति रावण-प्रथम मान्यता...! प्राचीन शिव मंदिर पौड़ीवाला। इस शिव मंदिर का इतिहास लंकापति रावण से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि रावण ने अरमता प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें वरदान दिया - ‘‘यदि रावण एक दिन में पंाच पौडि़या तैयार कर देगा। तो उसे अमरता प्राप्त हो जाएगी।’’
रावण ने पहली पौड़ी हरिद्वार में ‘हरकी पौड़ी’, दूसरी पौड़ी ‘पौड़ीवाला’ नाहन में, तीसरी पौड़ी ‘चुड़ेश्वर महादेव’, चौथी पौड़ी ‘किन्नर कैलाश’ में बनाई। इसके पश्चात रावण को नींद आ गई। जब वह जागा तो अगली सुबह हो गयी थी। इस प्रकार रावण अमरता से वंचित रह गया। 
मर्कंड ऋषि-दूसरी मान्यता...! पौराणिक गाथा के अनुसार। भगवान विष्णु की तपस्या करने के फलस्परूप। मर्कंड ऋषि को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। किन्तु उसे मात्र 12 वर्ष का जीवन काल का वरदान दिया गया। 
अल्प आयु के कारण ऋषिपुत्र व्यथित हो उठे। ऋषि पुत्र मर्कंड ने अरमता प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की निरंतर घोर तपस्या की। उन्होंने महामृत्युंजय का जाप किया। 12 वर्ष आयु पुरा करने पर जब यमराज उन्हें लेने आए। उन्हांेने बोहलियों स्थित शिवलिंग को बाहों में भर लिया। तभी भगवान शिव वहां प्रकट हुए। मारकंडेय को अरमता प्राप्त हुई। मारकंडे नदी का उदगम स्थल भी यही है। मान्यता है शिवशंकर, पौड़ीवाला में स्थित इस शिव लिंग में समा गए। 
तीसरी मान्यता...! एक बार सतयुग काल में। भगवान शिव शाप ग्रस्त हो गए। कहा जाता है कि हरियाणा के यादबद्री में। एक बार जन कल्याण के लिए देवताओं का एक महा-सम्मेलन बुलाया गया। देव योग से महर्षि नारद ने। सभी देवताओं के समक्ष अचानक गंभीर प्रश्न रख दिया। नारद ने कहा- ‘‘आज की सभा की अध्यक्षता जो भी देव करेगा, वह सर्वश्रेष्ठ देव कहलाएगा।’’
नारद के इस प्रस्ताव से। ब्रहमा, विष्णु और महेश के बीच भी श्रेष्ठता को लेकर। आपस में विवाद उत्पन्न हो गया। कहते हैं भगवान शिव ने क्रोध में ब्रहमा जी के पांचवें मस्तक को ही काट दिया।
इस दुलर्भ कृत्य से। भगवान शिव पर ब्रहम-हत्या का पाप लगा। दोष के निवारण के लिए। भगवान शिव को, हरियाणा के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल। ‘कपाल मोचन’ में लंबे समय तक तपस्या करनी पड़ी। इसके बाद ही शिव दोषमुक्त हुए।
तपस्या के उपरांत। भगवान शिव संसार का मार्ग प्रशस्त करने के लिए। हिमालय की ओर कूच करने लगे। इसी बीच भगवान शिव पौड़ी वाला पधारे। उन्होंने कुछ समय तक यहां तपस्या की। बाद में किन्नर कैलाश की ओर निकल पड़े।
बहरहाल...! प्राचीन मान्यताएं जो भी हों। एक बात स्पष्ट है। भगवान शिव के प्रति नाहन क्षेत्र के लोगों में अटूट विश्वास है। शिवरात्रि के अवसर पर। शिवालयों में बम-बम भोले की गूंज से। नाहन नगरी गूंजाएमान हो उठती है।

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