मां नन्दा राजराजेश्वरी राजजात यात्रा अन्तिम गांव वाण में ,धर्म भाई लाटू देवता प्राचीन मंदिर दर्शन।
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 Published On Jun 20, 2024

मां नन्दा राजराजेश्वरी राजजात यात्रा अन्तिम गांव वाण में नन्दा देवी का धर्म भाई लाटू देवता प्राचीन मंदिर दर्शन। नन्दा देवी राजजात यात्रा अन्तिम गांव वाण का लाटू धाम मंदिर दर्शन। यह गांव बद्रीनाथ मार्ग कर्णप्रयाग से 98 किलोमीटर थराली, देवाल, मुन्दोली एवं लोहाजंग होते हुए वाण गांव पहुंचते हैं । यहां पर बिसालकाय देवदार के वृक्ष के नीचे लाटू देवता का प्राचीन मंदिर है। राजराजेश्वरी देवी राजजात यात्रा मार्ग पर लाटू धाम मंदिर वाण।

उत्तराखंड के चमोली जिले के देवाल विकास खंड के अंतिम गांव या प्रथम गांव वाण में लाटू देवता का प्राचीन मंदिर है। यहां पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर में नागराज अद्भुत मणि के साथ रहते हैं। इतना ही नहीं, मंदिर को भीतर से आम लोग नहीं देख सकते।

स्थानीय लोगों का मानना है कि मणि की तेज रोशनी से इंसान अंधा भी हो सकता है. पुजारी के मुंह की गंध तक देवता तक और नागराज की विषैली गंध पुजारी की नाक तक नहीं पहुंचनी चाहिए। जबकि मंदिर के दरवाजे साल में एक बार वैशाख महीने की पूर्णिमा के मौके पर खुलते हैं। कपाट खुलने के वक्त भी मंदिर के पुजारी अपनी आंखों पर पट्टी बांधते हैं। कपाट खुलने के बाद श्रद्धालु देवता के दर्शन दूर से ही करते हैं। Roopkund and bedani bugyal trecking root.




लाटू देवता का नंदा देवी से है यह रिश्‍ता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, लाटू देवता उत्तराखंड की आराध्या देवी नंदा देवी के धर्म भाई हैं। जब भगवान शिव का माता पार्वती के साथ विवाह हुआ, तो पार्वती जिन्हें नंदा देवी नाम से भी जाना जाता है, को विदा करने के लिए सभी भाई कैलाश की ओर चल पड़े। इसमें उनके चचेरे भाई लाटू भी शामिल थे।रास्ते में लाटू देवता को प्यास लगी। वह पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगे।उन्हें एक कुटिया दिखी, तो लाटू वहां पानी पीने चले गए। कुटिया में एक साथ दो मटके रखे थे, एक में पानी था और दूसरे में मदिरा। लाटू देवता ने गलती से मदिरा पी ली और उत्पात मचाने लगे। इससे नंदा देवी को गुस्सा आ गया और उन्होंने लाटू देवता को श्राप दे दिया।मां नंदा देवी ने गुस्से में लाटू देवता को बांधकर कैद करने का आदेश दिया।

लाटू के पश्चाताप करने की वजह से मां नंदा देवी ने कहा कि वाण गांव में उसका मंदिर होगा और वैशाख महीने की पूर्णिमा को उसकी पूजा होगी. यही नहीं, हर 12 साल में जब नंदा राजजात जाएंगी, तो लोग लाटू देवता की भी पूजा करेंगे।तभी से नंदा राजजात के वाण गांव में पड़ने वाले 12वें पड़ाव में लाटू देवता की पूजा की जाती है। लाटू देवता वाण गांव से हेमकुंड तक अपनी बहन नंदा को भेजने के लिए उनके साथ जाते हैं।लाटू देवता की वर्ष में केवल एक ही बार पूजा की जाती है। हर साल स्थानीय मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आकर शामिल होते हैं. माना जाता है कि लाटू देवता इस मंदिर में नागराज के रूप में कैद हैं।

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