Baba Sidh Raja Bharthari Ji- मकरैड़ (पैंचे दा छत) VPO Makrer, Una_Guga Mandli Pind Makrer-10/09/23.
Baba Sidh Raja Bharthari Ji-मकरैड़ (पैंचे दा छत) Baba Sidh Raja Bharthari Ji-मकरैड़ (पैंचे दा छत)
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 Published On May 2, 2024

Jai Baba Sidh Raja Bharthari Ji-Sidh Makrer. • This Temple Situated at Village Makrer, Tehsil, Bangana, Una, Himachal Pradesh.
भरथरी एक ऐसा चरित्र है जिसके बारे में कहा जाता है कि वे योगी बने थे। भरथरी उज्जैन का राजा था। अब भरथरी क्यों योगी बनकर राज्य छोड़कर चले गये थे, इसके बारे में अलग अलग कहानियाँ प्रचलित है जिसमें आखिर में गोरखनाथ के कृपा से सब ठीक हो जाता है और भरथरी गोरखनाथ के शिष्य बन जाते हैं।
प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। बाद में इन्होंने गुरु गोरखनाथ का शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था, इसलिए इनका एक लोक प्रचलित नाम बाबा गोपीचन्द भरथरी भी है। भर्तृहरि संस्कृत मुक्तक काव्य परम्परा के अग्रणी कवि हैं। इन्हीं तीन शतकों के कारण उन्हें एक सफल और उत्तम कवि माना जाता है।
राजा भृतहरि की दो पत्नियां थीं, लेकिन फिर भी उन्होंने तीसरा विवाह किया पिंगला से। पिंगला बहुत सुंदर थीं और इसी वजह से भृतहरि उससे ज्यादा प्यार करते थे। राजा पत्नी मोह में अपने कर्तव्यों को भी भूल गए थे। उस समय उज्जैन में एक तपस्वी गुरु गोरखनाथ का आगमन हुआ।
गोपीचन्द भारतीय लोककथाओं के एक प्रसिद्ध पात्र हैं। वे प्राचीन काल में रंगपुर (बंगाल) के राजा थे और भर्तृहरि की बहन मैनावती के पुत्र कहे जाते हैं।
भरथरी ने अपने पिता को राजा बनाया और अपनी अद्वितीय शक्ति से उन्होंने दुनिया को अपने अधीन कर लिया । उन्होंने गंगा के तट पर कई राजसूय और अश्वमेध अनुष्ठान किए, ब्राह्मणों को बड़ी मात्रा में धन दान किया। भरत का भीमन्यू नाम का एक पुत्र था।
राज गोपीचंद उज्जयिनी के राजा भर्तृहरि की बहन मैनावती के पुत्र थे। कुछ वर्षों तक जब मैनावती को पुत्र नहीं हुआ तो मैनावती ने गुरु जालंधर नाथ से पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना की।
भारतीय बैडमिंटन संघ (बीएआई) के महासचिव अजय सिंघानिया ने पीटीआई को बताया, "सिर्फ एक कोटा उपलब्ध होने के साथ, गोपीचंद ने यह सुनिश्चित करने के लिए बाहर निकलने का फैसला किया कि संतोसा को समायोजित किया जा सके जो महामारी के बाद से साई (प्रनीत) के साथ प्रशिक्षण ले रहे हैं
गोपीचंद को माता का उपदेश गोपीचंद इकलौते पुत्र थे पिता का देहांत हो चुका था। कई कन्याएं (पुत्रीया) थी, माता जी ने एक दिन अपने पुत्र को स्नान करते देखा मां ऊपर की मंजिल पर थी, नीचे गोपीचंद की रानियां स्नान की तैयारी कर रही थी, माता ने अपने पुत्र को देखा तथा अपने पति की याद आई इसी आयु में इसके पिता की मृत्यु हो गई थी

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