Published On Premiered Aug 29, 2024
काया रहे ना काउ काम कि,रे,जब हंश बिदा होता है पूज्य गुरुदेव अमृत साहिब जी धौलपुर राजस्थान मचकूंद रोड
• काया रहे ना काउ काम कि,रे,जब हंश बिदा...
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@kiransadhvidholpur
यह कहावत "काया री न काऊ काम की जब हंस बिदा होता है" हमें जीवन के मूलभूत सत्य के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। इसमें 'काया' अर्थात शरीर और 'हंस' अर्थात आत्मा का उल्लेख किया गया है। यह कहावत इस तथ्य को उजागर करती है कि जब आत्मा शरीर से निकल जाती है, तो शरीर केवल एक निष्क्रिय वस्तु बन जाता है और उसकी कोई उपयोगिता नहीं रहती।
जीवन के दौरान हम अपने शरीर की देखभाल में अत्यधिक ध्यान देते हैं, लेकिन इस कहावत के अनुसार, यह सब अस्थायी है। शरीर केवल एक माध्यम है, जिसमें आत्मा निवास करती है और जब आत्मा इस शरीर को छोड़ देती है, तो शरीर की कोई अहमियत नहीं रह जाती। इसलिए, यह विचार हमें आत्मा की शुद्धता और उसकी अमरता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करता है।
यह कहावत यह भी दर्शाती है कि भौतिकता और भौतिक सुख-सुविधाएँ केवल जीवन के एक पहलू हैं। असली मूल्य आत्मा का शुद्धिकरण और आत्मिक उन्नति में है। जब हम अपनी आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की ओर बढ़ते हैं, तभी जीवन का असली अर्थ समझ में आता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, यह कहावत हमें यह सिखाती है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीजें वे हैं जो आत्मा से संबंधित हैं, न कि शरीर से। भौतिक चीजों और शारीरिक सुंदरता का मोह छोड़कर हमें आत्मिक उन्नति और आंतरिक शांति की खोज में ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जीवन का असली अर्थ इसी में है कि हम आत्मा के शुद्धिकरण और सच्चे मोक्ष की ओर अग्रसर हों, क्योंकि शरीर नश्वर है, पर आत्मा अनंत है।
इस प्रकार, यह कहावत हमें जीवन के उस सत्य की ओर इंगित करती है जो हमें भौतिकता से ऊपर उठकर आत्मिक और आध्यात्मिक जीवन की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।