Published On Premiered Jul 27, 2022
“उमाहौ" विल्होजी की सबसे लोकप्रिय और मर्मस्पर्शी रचना है, जिसे उन्होंने अपनी मृत्यु से कुछ समय पूर्व, अपने विश्राम स्थल पर एकत्रित लोगों के सामने गाया था। उन्होंने विक्रमी संवत 1673 में चैत सुदी एकादशी के दिन रामड़ावास गाँव में अपना नश्वर शरीर त्याग दिया था। वहीं उन्हें "समाधि" दी गई।
यह भक्त कवि का हृदय-भेदी कथन है। इस साखी में कवि ने गुरु जाम्भोजी के गुण, कर्म और महानता का स्मरण करते हुए अपनी हर्षित भावनाओं को अभिव्यक्त किया है। गुरु जाम्भोजी के पवित्र व्यक्तित्व की पृष्ठभूमि में वे अपनी अक्षमता और जीवन की क्षणभंगुरता को देखते हुए कारुणिक और उदासीन हो गए थे, लेकिन अन्य बिश्नोइयों की तरह, उनकी सबसे बड़ी ताकत, गुरुजी द्वारा बताये गए, भगवान विष्णु के "जप" में उनकी अटूट आस्था है।
उन्होंने अपने हृदय में उमड़ने वाले विभिन्न भावों को मार्मिक शब्दों में पिरोने का प्रयास किया है।
परमात्मा मिलन के संकेत, निर्दोष आवेग, जीवन के रहस्य का उद्घाटन और स्वयं की अनुभूति इस साखी में विनीत रूप से व्यक्त की गई है। ये विचार विल्होजी के संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। इस दृष्टि से यह उनकी रचनाओं में एक महान कृति है। यह विल्होजी की अन्तिम रचना है। बिश्नोई धर्म में दीक्षा के समय, उन्होंने गुरुजी महाराज से मुक्ति के लिए प्रार्थना की थी, और इस संसार से प्रस्थान के समय, वह अपने गुरु से मिलने की तीव्र इच्छा रखते थे। वह गुरु जाम्भोजी के मुकाम मंदिर के चबूतरे पर बैठे पक्षियों का उल्लेख करना भी नहीं भूलते और कहते हैं कि वे पक्षी धन्य हैं जो वहां भोजन प्राप्त करते हैं और साथ ही उनका स्मरण भी करते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है मानो मानव हृदय की ममता और भावनाओं का प्रवाह बुद्धि और ज्ञान की सीमाओं को पार कर गए हों। उन्होंने अपनी बिश्नोई जीवन शैली मुकाम से शुरू की, और रामड़ावास में अंतिम सांस लेते हुए वील्होजी, गुरुजी महाराज, जिनकी समाधि मुकाम में स्थित है, से सन्निकटता के लिए अभिलाषा करते हैं।-
1. कवि विल्होजी कहते हैं कि मैं जाम्भोजी के नाम पर अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार हूँ। यह नाम संतों के जीवन का आधार है, जिनके हृदय में उनका नाम होता है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. गुरु जाम्भोजी महाराज जम्बू द्वीप पर प्रकट हुए और उन्होंने चारों ओर प्रकाश फैलाया है। हमने देखा है कि गुरुजी केवल सच बोलते हैं और हमें उनसे बड़ी आशा है।
3. सभी लोग संयुक्त रूप से समराथल आते हैं जहां सतगुरु जाम्भोजी महाराज की गद्दी है। वहां उनकी उपस्थिति से ज्ञान का प्रकाश, रात्रि के बाद सूर्योदय पर होने वाले प्रकाश की भांति, फैल गया है।
4. इस मरुस्थल में गुरु महाराज जाम्भोजी विराजमान हैं, सभी उनका नाम जपते हैं और जिनका नाम जपते हैं वे स्वयं भगवान विष्णु हैं।
5. गुरु महाराज जाम्भोजी केसरिया टोपी पहनते थे और गले में माला रखते थे। वे सदैव सत्यवचन बोलते थे और किसी भी प्रकार के वाद विवाद में नहीं पड़ते थे।
6. गुरु महाराज को न भूख लगती थी, न प्यास लगती थी, न नींद आती थी और न ही काम-क्रोध से प्रभावित होते थे, मैं ऐसे गुरु को समर्पित हूं।
7. सम्राट सिकंदर लोदी और मोहम्मद खान नागौरी उनके ज्ञान से प्रभावित थे। कई अन्य राव और राजा भी उनसे प्रभावित हुए थे और वे श्रद्धापूर्वक उन्हें नमन करते थे।
8. गुरु महाराज ने साधारण मनुष्य को पूर्ण बनाया। गुरुजी महाराज एक प्रकार से सत्य की टकसाल थे। लोगों के मन से वासना और क्रोध को मिटाकर, गुरुजी ने उनके भ्रम को समाप्त किया।
9. सीप समुद्र में रहती है और उसकी उत्पत्ति भी समुद्र में ही होती है, पर उसमें रहकर भी वह सुखी नहीं होती। वह भी स्वाति की एक बूँद चाहती है।
10. पानी के बिना प्यास नहीं बुझ सकती और भोजन के बिना भूख नहीं मिट सकती। गुरु जाम्भोजी महाराज के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति ज्ञान का प्रकाश नहीं फैला सकता।
11. पानी मछली के बिना हो सकता है, लेकिन मछली पानी के बिना मर जाती है। हे सतगुरु जाम्भोजी ! उसी प्रकार आपको हमारी आवश्यकता नहीं है, लेकिन हम आपके बिना जीते नहीं रह सकते।
12. पपीहा पीहु पिहू का उच्चारण करता है और बहुत प्यास सहता है, लेकिन वह जमीन पर पड़ा पानी नहीं पीता। वह वर्षा की एक बूंद की आशा करता रहता है।
13. हंस का विश्राम स्थल मानसरोवर है, कोयल के लिए आम का पेड़। भौंरे के लिए कमल है और संतों के लिए भगवान विष्णु का नाम है।
14. जो गरीब है उसे संपत्ति से प्रेम है और कंजूस को भी धन से प्रेम होता है, कामी को स्त्री से प्रेम होता है, लेकिन संतों को भगवान विष्णु के नाम से प्रेम होता है।
15. जो व्यक्ति जल में नाव का सहारा नहीं लेता वह डूब जाएगा। इसी प्रकार जो व्यक्ति गुरु जाम्भोजी महाराज का सहारा नहीं लेता उसका उद्धार कौन करेगा?
16. इस धरा पर बहुत से ठगों ने संसार को भ्रम में डाल रखा है। वे दूसरों के मन को कपट से भर देते हैं, पर मेरा मन उन पर विश्वास नहीं करता।
17. धन्य हैं वे पक्षी जो जाम्भोजी महाराज के मंदिर के चबूतरे पर बैठकर अपना भोजन करते हैं और साथ ही उनका स्मरण करते हैं।
18. हम धन्य हैं कि हमें हर स्थिति में आनंद रहता है। जाम्भोजी ने हमें वह मार्ग बताया है जिससे हमें मोक्ष की प्राप्ति होगी।
19. हम शीशे और अन्य मूल्यवान वस्तुओं का व्यापार नहीं करते, अपितु हम मोती और हीरे का व्यापार करते हैं। मेरा मन, साधारण वस्त्रों में गुणों की खान, गुरु जाम्भोजी पर टिका है।
20. हे मुनियों ! हमें ये शुभ अवसर मिला है, न जाने फिर कब मिलें? हम तुम्हारे बिना दुखी हैं, और हे भगवान ! अब हममें और धैर्य नहीं बचा है।
21. कवि विल्होजी कहते हैं, "यह साखी गुरु महाराज की स्मृति में है। हे भगवान! मुझे आपसे बड़ी आशा है। मुझे जन्म और मृत्यु के चक्र से छुड़ाकर, स्वर्ग का धाम दो।"
22. वह किसी के मन का स्वामी है, और किसी का वह पीर है। विल्होजी कहते हैं, "हे बिश्नोइयों, हम केवल भगवान जाम्भोजी की शरण में हैं।"
व्याख्या-बीआर डेलू, बीकानेर।"