Published On Oct 9, 2024
भरत का विनम्र निवेदन: तेरे चरणों की सौगंध है माता
विवरण:
भरत, अयोध्या लौटने पर, जब माता कौशल्या से मिलते हैं, तो उनके मन में गहरा पश्चाताप और दुःख होता है। अपनी माता कैकेयी द्वारा रची गई साजिश और श्रीराम के वनवास की खबर से व्यथित भरत, कौशल्या के चरणों में गिरते हुए उन्हें सांत्वना देने का प्रयास करते हैं। वे अपने निर्दोष होने का विश्वास दिलाते हुए कहते हैं, "तेरे चरणों की सौगंध है माता, मुझे इस शरारत का बिल्कुल पता नहीं था।"
यह गीत भरत के हृदय की गहराई, उनका निर्दोष भाव, और अपने बड़े भाई राम के प्रति उनकी सच्ची भक्ति और निष्ठा को व्यक्त करता है। माता कौशल्या, भरत के इस भावुक निवेदन को सुनकर, उनकी पीड़ा को समझती हैं और उन्हें अपने ममतामयी आशीर्वाद से सांत्वना देती हैं। इस दृश्य में भरत की विनम्रता और कौशल्या की ममता का अद्भुत मेल देखने को मिलता है।