नाथद्वारा से कुंभलगढ़ दुर्ग तक रोड़ सफर / Road journey from Nathdwara to Kumbhalgarh Fort
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 Published On Aug 19, 2022

नाथद्वारा से कुंभलगढ़ दुर्ग तक रोड़ सफर

Road journey from Nathdwara to Kumbhalgarh Fort

नाथद्वारा राजस्थान राज्य के राजसमन्द ज़िले में स्थित एक नगर है। यह इसी नाम की तहसील का मुख्यालय भी है। यह एक प्रमुख हिन्दू धार्मिक स्थल है और बनास नदी के किनारे बसा हुआ है। यहाँ नंदनंदन आनन्‍दकंद श्रीनाथजी का भव्‍य मन्‍दिर है जो करोड़ों वैष्‍णवों की आस्‍था का प्रमुख स्‍थल है। प्रतिवर्ष यहाँ देश-विदेश से लाखों वैष्‍णव श्रद्धालु आते हैं जो यहाँ के प्रमुख उत्‍सवों का आनन्‍द उठा भावविभोर हो जाते हैं। श्रीनाथजी का लगभग 337 वर्ष पुराना मन्‍दिर राष्‍ट्रीय राजमार्ग पर स्थित रोडवेज बस स्‍टेण्‍ड से मात्र 1 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान के राजसमन्द ज़िले में स्थित एक दुर्ग है। निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के डलवाये जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था। वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है। इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने सन 13 मई 1459 वार शनिवार को कराया था। इस किले को 'अजयगढ' कहा जाता था क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करना दुष्कर कार्य था। इसके चारों ओर एक बडी दीवार बनी हुई है जो चीन की दीवार के बाद विश्व कि दूसरी सबसे बडी दीवार है। इस किले की दीवारे लगभग 36 किमी लम्बी है और यह किला किला यूनेस्को की सूची में सम्मिलित है। कुम्भलगढ किले को मेवाड की आँख कहते हैं। यह दुर्ग कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है जिससे यह प्राकृतिक सुरक्षात्मक आधार पाकर अजय रहा। इस दुर्ग में ऊँचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया। वहीं ढलान वाले भागो का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वाबलंबी बनाया गया। इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे "कटारगढ़" के नाम से जाना जाता है। यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है। इस गढ़ के शीर्ष भाग में बादल महल है व कुम्भा महल सबसे ऊपर है।

महाराणा प्रताप की जन्म स्थली कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा। यहीं पर कुंवर पृथ्वीराज और राणा सांगा का बचपन बीता था। उड़वा राजकुमार कुंवर पृथ्वीराज की छतरी भी इस दुर्ग में देखी जाती है | महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में छिपा कर पालन पोषण किया था। हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप भी काफी समय तक इसी दुर्ग में रहे। इस दुर्ग के बनने के बाद ही इस पर आक्रमण शुरू हो गए लेकिन एक बार को छोड़ कर ये दुर्ग प्राय: अजय ही रहा है लेकिन इस दुर्ग की कई दुखांत घटनाये भी है जिस महाराणा कुम्भा को कोई नहीं हरा सका वही शुरवीर महाराणा कुम्भा इसी दुर्ग में अपने पुत्र ऊदा सिंह द्वारा राज्य पिपासा में मारे गए। कुल मिलाकर दुर्ग ऐतिहासिक विरासत की शान और शूरवीरों की तीर्थ स्थली रहा है। माड गायक इस दुर्ग की प्रशंसा में अक्सर गीत गाते हैं :

कुम्भलगढ़ कटारगढ़ पाजिज अवलन फेर।
संवली मत दे साजना, बसुंज, कुम्भल्मेर॥
इस किले की ऊँचाई के संबंध में अबुल फजल ने लिखा है कि "यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की तरफ देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।" कर्नल जेम्स टॉड ने दुर्भेद्य स्वरूप की दृष्टि से चित्तौड़ के बाद इस दुर्ग को रखा है तथा इस दुर्ग की तुलना (सुदृढ़ प्राचीर, बुर्जों तथा कंगूरों के कारण) 'एट्रस्कन' से की है।


Nathdwara is a town located in the Rajsamand district of Rajasthan state. It is also the headquarters of the Tehsil of the same name. It is a major Hindu religious place and is situated on the banks of river Banas. Here is the grand temple of Nandanandan Anandkand Shrinathji, which is the main place of faith for crores of Vaishnavas. Every year lakhs of Vaishnava devotees from all over the country and abroad come here, who get engrossed in enjoying the major festivals here. About 337 years old temple of Shrinathji is situated just 1 kilometer away from the roadways bus stand on the national highway.

Kumbhalgarh fort is a fort located in the Rajsamand district of Rajasthan. On completion of the construction work, Maharana Kumbhal got coins put on which the fort and its name were inscribed. In this fort built according to the rules of Vastu Shastra, entrance gates, ramparts, reservoirs, emergency gates to go out, palaces, temples, residential buildings, sacrifice altars, pillars, umbrellas etc. have been made. This fort was built by Maharana Kumbha on 13 May 1459 on Saturday. This fort was called 'Ajaygarh' because it was a difficult task to conquer this fort. A big wall has been built around it, which is the second largest wall in the world after the wall of China. The walls of this fort are about 36 km long and this fort is included in the list of UNESCO.

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