Published On Jun 23, 2024
नमामीशमीशान निर्वाणरुपम् विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरुपम्।
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नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विंभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहम्। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्।।1।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहम्।।2।।
तुषाराद्रिसंकाश गौरं गभीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा।।3।।
चलत्कुंडलं भ्रूसुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालम्।।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।4।।
प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखंडम् अजं भानुकोटिप्रकाशम्।।
त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्।।5।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनान्ददाता पुरारी।।
चिदानंदसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।।6।।
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं। भजंतीह लोके परे वा नराणाम्।।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम्।।7।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यम्।।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो।।8।।
श्लोक-रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा: भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति।।