Published On Jul 17, 2024
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने वही यह सृष्टि चला रहे हैं ।
जो पेड़ हमने लगाया पहले उसी का फल हम अब पा रहे हैं ।
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने वही यह सृष्टि चला रहे हैं ।
इसी धरा से शरीर पाए इसी धारा में फिर सब समाए।
है सत्य नियम यही धरा का एक आ रहे हैं एक जा रहे हैं ।
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने वही यह सृष्टि चला रहे हैं
जिन्होंने भेजा जगत में जाना तय कर दिया लौट के फिर से आना जो भेजने वाले हैं यहां पर वही फिर वापस बुला रहे हैं ।
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने वही यह सृष्टि चला रहे हैं ।
बैठे हैं जो धान की बालियों में समाए मेहंदी की लालियों में।
हर डाल हर पते में समा कर गुल रंग बिरंगे खिला रहे हैं ।
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने वही यह सृष्टि चला रहे हैं।
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