Published On Oct 5, 2024
बाबा नागार्जुन की दो महत्वपूर्ण कविता 'हरिजन गाथा और 'सिंदूर तिलकित भाल' पर वरिष्ठ शोधार्थी अमित प्रभाकर का सारगर्भित और सुचिंतित वक्तव्य रहा। इसी बहाने अन्य वक्ता गण नागार्जुन के काव्य के विविध आयामों पर भी बातचीत की। जिज्ञासुओं ने अपने प्रश्न भी रखे। इन प्रश्नों पर भी अच्छी चर्चा हुई। 'साहित्यिक संवाद समूह' की पूरी टीम का धन्यवाद। आगामी दिनों में हम विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों व शोधार्थियों को भी सुनते रहेंगे। वास्तव में महसूस होता है कि किताबों से ज्यादा हम साहित्यिक चर्चा से सीखते हैं। किताब तो जीवन का आधार है ही। लेकिन किताबों के बाहर की दुनिया भी बहुत खूबसूरत है। हमारे लिए साहित्य-चर्चा का मतलब सत्संग है। तुलसीदास कहते भी हैं कि 'बिनु सत्संग विवेक न होई'। अतः साहित्यिक-विवेक के लिए ऐसे आयोजनों में उपस्थित रहना हमारे लिए अनिवार्य हो जाता है। सुनने और अपनी बात रखने का इतना अच्छा माहौल और मंच अन्यत्र दुर्लभ है। यहाँ सबको अपनी बात रखने और प्रतिभा के विकास का मौका दिया जाता है। एक बात और कि हमारी कोशिश यह रहे कि अंत समय तक सभा में हम बने रहें ताकि वक्ता और श्रोता दोनों को कहने-सुनने में आनंद आये। आगामी कार्यक्रमों में आपकी उपस्थिति अपेक्षित है.....🌸🌸