जालोर सुन्देरलाब तालाब का इतिहास क्या है कैसे पड़ा नाम जानें - history of Jalore Sunderlab pond
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 Published On Premiered Jul 16, 2024

जालोर सुन्देरलाब तालाब का इतिहास क्या है कैसे पड़ा नाम जानें - history of Jalore Sunderlab pond

जालौर ( 17 जुलाई 2024 ) नमस्कार साथियों हम आज जालोर से जुड़ी इतिहास से संबंधित जानकारी के साथ नया वीडियो लेकर आया हूं जालोर के इतिहास से जुड़ा कुछ किस्से हैं । अगर आप भी जालोर से तालुक रखते हैं यहां फिर आप भी जालौर के रहने वाले हैं तो यहाँ आपके लिए कुछ खास संबंधित होगा। यहां वीडियो शुरू करने से पहले अगर आप हमारे चैनल पर अभी नया जुड़े हुए हैं तो आप अभी चैनल को लाइक और शेयर करे देवें जैसे कि आप सभी को मालूम है कि मैंने दो दिन पहले ही जालोर सुन्देरलाब तालाब के बारे में विडियो डाला था जानकारी के साथ और आज एक बार फिर से सुन्दरलाब तालाब, जिसे "तुलसी घाट सागर" भी कहा जाता है, यहां राजस्थान के जालौर जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का तालाब है। यह तालाब न केवल अपने सुंदर दृश्य और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके पीछे की कहानी भी अत्यंत दिलचस्प है। आइये जानते हैं इतिहास यहां का

सुंदेलाव तालाब सातवीं शताब्दी में राजा नाग भट्टा के समय बनाया गया था ‌। सुंदेलाव तालाब का पानी राजाओं से लेकर आमजन ने 13 सालों तक उपयोग लिया गया है। इतिहास के अनुसार सुंदेलाव तालाब करीबन 300 साल पहले प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वारा अपनी माता श्री सुंदर देवी की याद में निर्माण करवाया था । जाबलिपुर ( जालोर ) से प्रतिहार राज्य वस्तराज हस्तिन के विशाल राज्य का सीधा संबंध रहा है । जालौर से पश्चिम बंगाल तक राज्य के पहले वाले राज्य की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है । प्रतिहार राजा भोज ने जालौर में संस्कृत विधि अध्ययन के लिए पाठशाला का निर्माण करवाया था ‌। जालौर ज्योतिष शास्त्र के साथ विभिन्न विधाओं के अध्ययन का केंद्र था । इतिहासिकार महत्व की पाठशाला का सन् 1311 में युद्ध में नुकसान झेलना पड़ा था । लेकिन तालाब कोई नुकसान शत्रु आज तक नहीं पहुंचा सका ।
इसका अस्तित्व आज भी कायम है। जल तन मन की प्यास को शांत करता है तालाब को मिटाया नहीं जा सकता । अग्नि को बुझाने वाला जल एवं जीवों की शांति और एकता को केंद्र है । प्रतिहार साम्राज्य निर्माण के अपनी वन्सराज ( 709 - 799 ई ) के शौर्य - व्याख्या के अन्य पक्षियों और विपक्षिय उल्लेख से सम्मान है। यह अर्पुण लेख वत्सराज के ध्वस्त स्मारक लेखका एक भग्नावशेष होना जिसका निर्माण उसके पुत्र नाग भट्ट द्वितीय ने माता श्री सुंदर देवी के नाम निर्मित सरोवर ( सुन्देलाव ) तट पर करवाया था । सुंदेलाव तालाब के उत्तर पूर्व तट पर अवस्थित चामुंडा मंदिर के उत्तर दिशा में कृषि भूमि पर प्रस्तावित नहीं बस्ति ( ऋषभ नगर ) के निर्माण हेतु नीव की खुदाई में मग्न शिलालेख मार्च 1995 ई. वर्ष में प्राप्त हुई । संस्कृत भाषा का यह लेख
उस काल का दृष्टि मत होता है । जब कुटील लिपि नगरी में विकसित हो रही थी । शिलालेख काले पत्थर ग्रेनाइट का है। जालौर ग्वालियर प्रशंसित और राधनपुर दान पात्र पर लेखों के मिलान से सार निकालते हैं कि राजा वस्तराज की समाधि के छत्र है। यहां समाधि सुन्देरलाव तालाब की पाल पर होना निश्चित है। परंतु कहां पर अभी तक जानकारी नहीं है हमारे चेनल के पास में ।
तालाब वास्तुकला और सांस्कृतिक महत्व धार्मिक महत्व
इस तालाब का उद्देश्य उस समय की जल संचयन प्रणाली को बेहतर बनाना और जल संकट का समाधान करना था । तालाब के चारों ओर सुंदर घाट, मंदिर और बगीचे हैं, जो इसे एक आकर्षक स्थल बनाते हैं। इसके पास स्थित महादेव मंदिर , हनुमान मंदिर जी का, चामुण्डा माता मंदिर, माजीसा मंदिर , भेरू का मंदिर, क्षेमंकरी माता मंदिर के आसपास में साथ ही साथ में छोटे छोटे बच्चों के लिए झूले लगाया हुआ है सेल्फ़ी फाउंड तालाब भी बना हुआ है पानी के बीच बीच में टोप बनाया हुआ है जिसके कारण से अनुरूप ही अत्यंत सुंदर है। जिसे आए दिन यहां पर सुन्देरलाव तालाब और इसके आस-पास के मंदिरों का धार्मिक महत्व भी है। यहाँ पर हर साल कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं। और इस तालाब के निर्माण ने उस समय की समाजिक संरचना और जल प्रबंधन प्रणाली को मजबूती प्रदान की। यह तालाब उस समय की इंजीनियरिंग और कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। जोकि आज भी जीव जागता का तालाब के साथ जुड़ी पौराणिक कहानियाँ परिणाम मौजूद है । वर्तमान में इसको तुलसी घाट भी कहां जाता है।
सुन्दर राईका की मुर्तियां - सुंदेलाव तालाब पर लगीं छतरी देवासी समाज का मानना है कि आज से 700 साल पहले सुंदर तालाब पर सुंदर भाड़का की मूर्ति लगाई गई थी। शहर की ऐतिहासिक धरोहर सुन्देलाव तालाब जिसको राजा कान्हादेव ने जैसलमेर के सुन्दर राईका की याद में खुदवाया था अभी तक का पूरी तरीके से सुंदर तालाब की जानकारी प्राप्त नहीं हुई है ।
सुंदेलाव तालाब में जल भराव क्षमता - सन् 196.25 में जालौर बीघा क्षेत्र में फैला था । और सन् 1952 के बाद में पूरा तालाब क्षेत्र में जल भराव हुआ था । तालाब की हनुमान पाल के ऊपर पानी चढ़ गया था इतना पानी फिर कभी जालोर में नहीं आया था । बरसा। सन् जुलाई 1976 में तालाब भराव क्षेत्र में नगर पालिका ने कॉलोनी के बसावत करवाना के बाद में क्षेत्र कम होते ने होते 147.4 बीघा क्षेत्रफल रह गया है ।
तालाब की सन् 1973 से पहले 20 एमसीए एफ टी क्षमता थी ‌। सन् 1873 की बाद में शिवाजी नगर को जल भराव डूब से बचाने के लिए प्रशासन के भराव गेज कम कर दिया गया है। तुलसी घाट की 13 सीढ़ियों में ओवरफ्लो होकर बाहर बह कर नदी में चला था। वर्तमान में तालाब जल भराव क्षमता 13 एमसीए एफ टी रह गई है। 2 साल के प्रयास से तालाब की खुदाई ने भराव क्षमता में वृद्धि की है ।
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