Published On Aug 21, 2021
@ध्रुवस्वामिनी तृतीय अंक भाग-12 • #ध्रुवस्वामिनी तृतीय अंक भाग-12#जयशंक... .हरियाणा के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में बी.ए.प्रथम वर्ष के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार पाठ्य-पुस्तकःध्रुवस्वामिनी नामक नाटक में नाटककारःश्री जयशंकर प्रसाद ने गुप्तकालीन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में कल्पना मिश्रित ऐसा ताना-बाना बुना है जिसमें नारी शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाई गई है।नाटक तीन भागों में विभाजित है।इसके तीसरे अंक के आरंभ में शक-दुर्ग के एक प्रकोष्ठ में ध्रुवस्वामिनी चिंतित बैठी हुई दिखाई देती है।तभी जीत की बधाई देने मंदाकिनी आती है और वह ध्रुवस्वामिनी को भाभी कहकर पुकारती है जिसका वह विरोध करती है।उसी समय पुरोहित उपद्रव के बाद शांतिकर्म के लिए पधारते हैं मगर वहाँ उन्हें ध्रुवस्वामिनी की हृदय-विदारक दशा का पता चलता है तो वे धर्मशास्त्र का विधान पुनः देखने चले जाते हैं।तभी एक सैनिक ध्रुवस्वामिनी के समक्ष उपस्थित होकर बताता है कि जीत का समाचार पाकर राजाधिराज रामगुप्त आ गए हैं और आपसे मिलना चाहते हैं किंतु ध्रुवस्वामिनी मना कर देती है और चंद्रगुप्त के घावों के विषय में पूछती है।सैनिक बताता है कि कुमार ठीक हैं, घावों पर लेप लगा दिया है और अब कुमार आराम कर रहे हैं।उसी समय कोमा अपने पिता मिहिरदेव के साथ महारानी ध्रुवस्वामिनी के पास आकर शकराज का शव माँगती है तो महादेवी उसे शव ले जाने की आज्ञा दे देती है।ध्रुवस्वामिनी और मंदाकिनी आपस में बातचीत कर रही थी तभी चंद्रगुप्त वहाँ आते हैं तथा अपने लौट जाने की बात कहते हैं तो मंदा उन्हें आराम करने की सलाह देते हुए कहती है कि क्या इस तरह महादेवी को छोड़कर जाना उचित है। उसी समय रामगुप्त की आज्ञा से उसके सैनिक शकराज का शव लेकर जाती निरीह कोमा और मिहिरदेव का वध कर देते हैं।णब सामंतकुमार रामगुप्त के इस कायरतापूर्ण कुकृत्य के लिए उसकी निंदा करते हैं।शोर सुनकर रामगुप्त वहाँ पहुँच जाता है और सामंतकुमारों व चंद्रगुप्त को बंदी बनाने के लिए आदेश देता है।ध्रुवस्वामिनी चंद्रगुप्त को विरोध करने की प्रेरणा देती है तथा स्वयं भी रामगुप्त का प्रचण्ड विरोध करती है इसलिए रामगुप्त उसे बंदी बनाने का आदेश देते हैं।यह सुनकर क्रोधित चंद्रगुप्त लौह-श्रृंखला तोड़ देता है तथा सैनिकों को आदेश देकर सामंतकुमारों को भी आज़ाद करवा देता है।कुमार जब अपने अधिकारों की माँग करता है तो शिखरस्वामी परिषद् बुलाता है।परिषद् रामगुप्त से सारे अधिकार छीनकर चंद्रगुप्त को गुप्त-सम्राट् घोषित करती है और पुरोहित भी ध्रुवस्वामिनी को रामगुप्त से मोक्ष का अधिकार देते हैं।परिषद् और शिखरस्वामी को अपना विरोधी जानकर रामगुप्त कटार निकालकर चंद्रगुप्त का वध करने को तत्पर होता है तभी एक सामंतकुमार इस कुचेष्टा के लिए रामगुप्त का वध कर देता है।सभी समवेत स्वर में 'राजाधिराज चंद्रगुप्त की जय' तथा ' महादेवी ध्रुवस्वामिनी की जय'का उद्घोष करते हैं।इसी के साथ नाटक का सुखद अंत होता है।कल्याणम् अस्तु।🙏🙏🙏