Published On Aug 31, 2021
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माँ शीतला देवी की मान्यता -
शीतला देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य, नैनीताल जिले के हल्द्वानी में स्थित है। यह हल्द्वानी से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भव्य एवं विशाल मंदिर है|
शितला देवी मंदिर हल्द्वानी का एक बहुत बड़ा आकर्षक मंदिर है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है यहां का माहौल काफी शानदार है। यात्रियों को मां के दर्शन के साथ-साथ यहां पिकनिक माना भी अच्छा लगता है।
शितला देवी जिसे सिताल भी कहा जाता है। शितला मां मंदिर मां शितला को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है जिसकी उत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, नेपाल, बंग्लादेश और पाकिस्तान में पोक्सदेवी के रूप में व्यापक रूप से पूजा की जाती है।
इतिहासकारों द्वारा सन 1892 में हल्द्वानी अल्मोड़ा मोटर मार्ग के निर्माण से पूर्व तक, दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों एवं मैदानी क्षेत्रों से बद्रीनाथ, केदारनाथ, जागेश्वर, बागेश्वर की यात्रा करने वाले यात्री इसी मार्ग से होकर जाया करते थे।
मंदिर के पीछे चंद राजाओं के समय में हाट का बाजार लगाया जाता था तथा वहा लोग दूर-दूर से सामान खरीदने आया करते थें। माना जाता है। कि मंदिर के पास ही बदरखरी गढ़ था जो गोरखा राजाओ के द्वारा युद्ध में ध्वस्त कर दिया गया।यहां पर आज भी ध्वस्त दीवारों और पत्थरों में ओखली आदि के अवशेष दिखाई देते हैं |
माना जाता हैं कि शीतला देवी के नाम से पूजित इस स्थान पर यात्रा मार्ग के निकट एक बहुत बड़ा बाज का वृक्ष है जिसके नीचे मां भगवती उमादेवी ने विश्राम किया था।
शीतला देवी के बारे में
स्कन्द पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है। ये हाथों में सूप,कलश, झाडू तथा नीम के पत्ते धारण करती है।
मां शीतला को चेचक आदि कई रोगों की देवी बताया गया है। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। उसे सूप से हवा लगायी जाती है। झाड़ू से चेचक के फोड़ो को फोड़ा जाता है। नीम के पत्ते फोड़े को सड़ने नहीं देती थी तथा रोगी को ठंडा जल प्रिय होता था अतः यह कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते थें। शीतला मंदिर में माता को प्रायः गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है।