इतिहास - "मँय छत्तीसगढ़िया अँव" लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत का
ARUN KUMAR NIGAM ARUN KUMAR NIGAM
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 Published On Nov 3, 2023

आज 03 नवम्बर को जनकवि, गीतकार और लोक गायक लक्ष्मण मस्तुरिया की पुण्यतिथि है। इस अवसर पर हम उनके लिखे और गाये गीत "मैं छत्तीसगढ़िया अँव गा" का इतिहास बताने जा रहे हैं। 


दाऊ रामचंद्र देशमुख कृत चंदैनी गोंदा का प्रथम प्रदर्शन 7 नवंबर 1971 को ग्राम बघेरा में हुआ था। पहले कार्यक्रम में लक्ष्मण मस्तुरिया नहीं थे। दिसंबर 1971 में आकाशवाणी रायपुर से एक कवि सम्मेलन प्रसारित हो रहा था उसमें मस्तुरिया "मैं छत्तीसगढ़िया अँव गा" का पाठ कर रहे थे। पवन दीवान भी उसे कवि सम्मेलन में थे। दाऊ जी को मस्तुरिया के टिपिकल छत्तीसगढ़ी सुर और अंदाज़ ने मोह लिया। दूसरे दिन वे आकाशवाणी गए और वहां लाल रामकुमार सिंह से उनका पता लिया और उन्हें बघेरा आने पत्र लिखा। एक पत्र दीवान जी को भी लिखा कि लक्ष्मण को बघेरा भेजें।


 इसी दौरान लक्ष्मण मस्तुरिया बिलासपुर में रामाधार कश्यप के यहां गए। कश्यप के बाहर आते तक सेंटर टेबल ठोंक कर कुछ गुनगुना रहे थे। कश्यप जी ने उनकी मधुर आवाज सुनकर कहा कि यहां तुम्हारी कद्र नहीं है। उन्होंने मस्तुरिया को दाऊजी का नाम एक पत्र दिया और कहा कि तुम्हारी कद्र बघेरा में होगी, वहां जाओ और दाऊजी को यह पत्र देकर मिलो। 

मस्तुरिया ने प्रथम बघेरा यात्रा का जो वृत्तांत चंदैनी गोंदा के उद्घोषक सुरेश देशमुख को सुनाया था जो उनके द्वारा संपादित ग्रंथ "चंदैनी गोंदा, छत्तीसगढ़ की एक सांस्कृतिक यात्रा" में उल्लेखित है। यह लक्ष्मण मस्तुरिया के शब्दों में इस प्रकार है - 

"मैं लगभग 10:00 बजे सुबह बघेरा पहुंचकर जहां मरीज बैठते हैं वहां बैठ गया। दाऊजी आते थे, मरीजों को देखते थे और अंदर जाकर दवाई लेकर लौटते थे। यह क्रम दोपहर तक चलता रहा। लगभग एक से चार बजे तक दाऊजी बाहर नहीं आए। 4:00 के बाद यही कम फिर शुरू हुआ। शाम 7:00 तक मरीजों की भीड़ छँट गई और मैं अकेले बैठा रहा। रात जब दाऊजी चैनल गेट बंद करने आए तो मुझे अकेले बैठे देखकर पूछा कि क्या चाहिए ? सवेरे से बैठे हो, कुछ बताते नहीं। मेरे मुंह से निकला कि मैं लक्ष्मण मस्तुरिया हूँ। 

दाऊजी पश्चाताप सा करते हुए बोले कि अंदर चलो। ड्राइंग रूप में बैठते ही बोले कि  "मैं छत्तीसगढ़िया अँव"  सुनाओ फिर लगातार तीन-चार गीत सुने। मैंने जब कहा कि पानी पीना है तो उनका ध्यान गया कि मैं सवेरे से भूखा प्यासा बैठा हूँ,  फिर हमने खाना खाया और मैं रात बघेरा में ही सोया। मैं इस प्रथम बघेरा यात्रा को कभी नहीं भूल सकता इसके बाद तो मस्तुरिया बघेरा और चंदैनी गोंदा के होकर रह गए और बरसों तक दाऊजी के घर में ही रहे।

चंदैनी गोंदा का दूसरा प्रदर्शन ग्राम पैरी में 29 जनवरी 1972 को हुआ जिसमें लक्ष्मण मस्तुरिया के काफी गीत शामिल किए गए और वे लोक गायक के रूप में भी स्थापित हो गए। लक्ष्मण मस्तुरिया ने दाऊ रामचंद्र देशमुख का साथ चंदैनी गोंदा के विसर्जन की घोषणा तक निभाया। उन्होंने न केवल चंदैनी गोंदा के लिए गीत लिखे बल्कि देवार डेरा और लोक नाट्य कारी के लिए भी अनेक गीत लिखे। 

आज हम आपको वही गीत सुनाने जा रहे हैं जिसके कारण लक्ष्मण मस्तुरिया और दाऊ रामचंद्र देशमुख आपस में परिचित हो पाए। यह गीत है - "मँय छत्तीसगढ़ी अँव गा"।

वीडियो ग्राफिक्स - मिलन मलरिहा
संकलन - अरुण कुमार निगम
साभार : सुरेश देशमुख

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