Aap Paramaatma hain ! (kya hai isaka arth ?) | आप परमात्मा हैं ! (क्या है इसका अर्थ ?)
सत्य की ओर - हंसानंद जी महाराज सत्य की ओर - हंसानंद जी महाराज
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 Published On Aug 25, 2024

महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तक 'ॐ = ब्रह्म = आत्मा' अब उपलब्ध!
₹250 + ₹100 डिलीवरी। बुकिंग के लिए इस नंबर पर संपर्क करें: +91 - 8287367201

महाराज जी की पुस्तक 'ॐ = ब्रह्म = आत्मा' ₹250 में अब फोन/ Kindle पर भी उपलब्ध।
अपने फोन पर पुस्तक प्राप्त करने के लिए:
Step 1: अपने फोन पर Amazon ऐप डाउनलोड करें और इंस्टॉल करें। इसे Google Play Store या Apple App Store से प्राप्त करें।
Step 2: ऐप को खोलें और अपने Amazon अकाउंट से लॉगिन करें।
Step 3: इस लिंक पर जा पुस्तक खरीदे: https://www.amazon.in/dp/B0DDTVTX9Y
Step 4: 'Buy' बटन पर क्लिक करें। यदि आपकी भुगतान विधि पहले से सेट है, तो पुस्तक आपके Kindle ऐप पर उपलब्ध हो जाएगी।
Step 5: गूगल एप स्टोर से kindle एप डाउनलोड करे और अपने अमेजन अकाउंट के लॉगिन पासवर्ड से Kindle एप में लॉगिन करे
Step 6: Kindle ऐप को खोलें और अपनी लाइब्रेरी में नई पुस्तक देखें। अब आप इसे पढ़ना शुरू कर सकते हैं।

Kindle डिवाइस पर पुस्तक प्राप्त करने के लिए कदम:
Step 1: अपने Kindle डिवाइस को चालू करें और इंटरनेट से कनेक्ट करें।
Step 2: Amazon अकाउंट से लॉगिन करें। सुनिश्चित करें कि आपका Kindle डिवाइस आपके Amazon अकाउंट से जुड़ा है। यदि नहीं जुड़ा है, तो लॉगिन करें या अकाउंट सेट करें।
Step 3: स्क्रीन पर दिए गए सर्च बॉक्स में "ॐ = ब्रह्म = आत्मा" या आपकी इच्छित पुस्तक का नाम टाइप करें और सर्च करें।
Step 4: सर्च रिजल्ट्स में से सही पुस्तक का चयन करें और पुस्तक के विवरण पेज पर जाएं।
Step 5: 'Buy' बटन पर क्लिक करें। यदि आपका भुगतान सेट है, तो पुस्तक आपके Kindle डिवाइस पर डाउनलोड हो जाएगी।
Step 6: पुस्तक पढ़ें

प्रस्तुत वीडियो दृष्टि ही सृष्टि इस प्रसिद्ध उक्ति का वास्तविक मर्म स्पष्ट करते हुए अनेक गहन बातों को भी प्रकाशित करता है, जैसे कि -
1. क्या हम ही परमात्मा हैं? यह बात पचती नहीं ! एक साधक का प्रश्न।
2. दृष्टि ही सृष्टि है और दृष्टि बदलती है तो दृष्टा का स्वरुप भी बदलता है।
3. नाम एवं रूप की प्रतीति हमें खुद भी एक नाम-रूप बना देती है अर्थात हम स्वयं को एक शरीर समझने की भूल कर बैठते हैं !
4. दो प्रकार के अस्तित्व हैं। एक तो है समग्र अस्तित्व और दूसरा है नाम-रूप प्रतीतियों वाला खण्डित अस्तित्व।
5. परमात्मा अद्वैत है। अद्वैत मतलब दो नहीं। जब दो नहीं तो परमात्मा के समक्ष कोई सृष्टि भी नहीं जिसका कि वह संचालन करे !
6. नाम-रूप की प्रतीतियां करना बंद करे !

00:00 - हम परमात्मा हैं यह बात पचती नहीं - प्रश्नकर्ता
01:44 - दो प्रकार के 'है-पन' या अस्तित्व हैं, एक है अविभाजित अस्तित्व और दूसरा है विभाजित अस्तित्व
07:07 - स्वामी विवेकानंद वेदांत की दृष्टि से बोले कि आप परमात्मा हो !
09:16 - परमात्मा के विषय में हमारा अज्ञान !
10:33 - नाम-रूप की प्रतीति कर हम खुद को सीमित एवं खंडित करते हैं
12:26 - सीमित की प्रतीति नहीं हो तो हम अरूप हो जाते हैं !
14:20 - खुद को खुद से जानना
16:38 - मोक्ष का स्वरूप तथा मोक्ष किसी व्यक्ति को नहीं मिलता !

This video emphasises how we turn into a body-mind organism - a person by observing totality from a false perspective of names and forms. The following points are elucidated -
1. Are we the supreme reality? It is indigestible! A question by some seeker.
2. The way of looking is what it looks and alteration in this way changes the looker.
3. Perceptions of names and forms render our identity as name and form, and we forget our real nature.
4. There are two kinds of existence. One is real and total undivided existence, and the other is pseudo existence, which is divided because of perceiving names and forms.
5. The reality is non-dual, which means two existences don't exist. In this way, there is no existence, such as God or Power, who controls a world!
6. Stop giving names and firms to your perceptions!

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