Kirtan Samaj || Shri Yadunathji Maharaj Utsav || Shri Yamunaji Utsav || Shashthpeeth || 2021
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 Published On Streamed live on Apr 18, 2021

श्री कल्याणराय प्रभुविजयते

सोमयागी श्रीवल्लभ स्वरूप, सेवा रसिक, आयुर्वेद निष्णात श्रीविट्ठलेश्वर प्रिय श्रीमहाराजजी को प्राकट्य सम्वत् 1615 चैत्र सूद छठ के दिन अडेल में श्रीविट्ठलेश प्रभु चरण श्रीगुसाँईजी के षष्ठ पुत्र रत्न के रूप में भयों। आप परम प्रतापी एवं विरहाग्नि स्वरूप ताप सदा श्रीप्रभु के मिलन की तीव्र इच्छा अपने मन में राखते। श्रीहरिराय चरण आज्ञा करत है -

गूढ़ाशयं ज्ञान निधिं महाराजं दया परं ।
प्रौढ़लीला प्रियायुतं श्रीयदुनाथ महम् भजे ॥

श्रीयदुनाथजी को लीला में स्वरूप श्रीयमुनाजी को मान्यो है। श्रीयमुनाजी मुकुंद रति वर्धनी स्वरूप है। श्रीप्रभु की किशोर लीला (प्रौढ़लीला) में आपकी विशेष आसक्ति है। आपश्रीकी रति तो रासरासेश्वर में स्थित हती। यह भाव श्रीगुसाँईजी जान कछु कहे नहीं। मौन रहे। जैसे श्रीकृष्ण प्रभु सों मिलन की तीव्र इच्छा सों श्रीयमुनाजी सघोष सहित आनंदित तरंग के प्रवाह सो तीव्र गति सो पधार रहे है। एसो ही आप श्रीयदुनाथजी को तीव्र तापात्मक भाव देख द्वितीय बंटवारा के समय प्रभुचरण ने रासरासेश्वर परम मोहिनी श्रीकल्याणराय प्रभु को आपश्री के श्रीमस्तक पे पधराए। अति आनंद एवं प्रीत सो श्रीमद् गोकुल में षष्ठ गृह स्थापित कर आपश्री अपने पाँचो पुत्र श्रीमधुसूदनजी, श्रीरामचंद्रजी, श्रीजगन्नाथजी, श्रीबालकृष्णजी एवं श्रीगोपिनाथजी सहित प्रभु को खूब लाड लड़ाय के सेवा करते। आज आपश्री की बेठक श्रीमद गोकुल में प्राचीन षष्ठ गृह के नाम सू विध्यमान है।

पुष्टिमार्ग में पांच वल्लभ स्वरुप माने हें। प्रथम तो श्री महाप्रभुजी, द्वितीय श्रीविट्ठलेश महाप्रभु, तृतीय श्री गोकुलनाथ महाप्रभु, चतुर्थ श्री यदुनाथ महाप्रभु तथा पंचम श्री हरिराय महाप्रभु।

श्री यदुपति जीवन जगतना सदा मन प्रसन्न उल्लास रे रसना
नाह ते श्री महाराणीजी तणा मुख माधुरी विलास रे रसना।

आपश्री को विवाह श्री महाराणी बहूजी के साथ संवत 1630 में भयों। आपश्री के ज्येष्ठ पुत्र श्री मधुसुदनजी की वंश परंपरा में षष्ठ निधि परम मोहिनी स्वरूप श्री कल्याणरायजी अद्यावदि बिराज रहे हें।

श्रीयदुनाथ महाप्रभु ने श्री आचार्यचरण के जीवन चरित्र कुं जानवे एवं वाके गुढ अध्ययन करवे हेतु आपश्री ने स्वयं पृथ्वी पर्यटन प्रारम्भ कियो। श्री आचार्यचरण जहां जहां पधारे तहां तहां सर्वत्र आपश्री पधारे। विविध स्थानन सूं श्रीआचार्यचरण के चरित्र एवं प्रताप को श्रवण - दर्शन कर आपश्री ने श्री महाप्रभुजी के जीवन आधारित एक ग्रंथ प्रकट कर्यो संवत 1658 फागुन शुक्ल 2 दूज के दिन नर्मदा तट पे चमत्कारी पुर ( अभी चाँदोद ) में श्रीवल्लभ दिग्विजय नामक यह ग्रंथ सम्पूर्ण कियो। जैसे श्रीयमुनाजी को स्वरूप श्रीप्रभु के विरह में संयोगानुभूति को दान करवे वारों है तैसो ही स्वरूप श्रीयदुनाथ महाप्रभु को है।

ऐसे ज्ञान स्वरूप षष्ठ निधि श्रीकल्याणराय प्रभु जिनके द्वारा नित्य सेवित है , जो पुष्टि फल स्वरूप प्रभु विरह को दान निजजन कुं देत है, जो आयुर्वेद पारंगत हें द्विजवर तिलक सोमयागी श्री विट्ठलसुवन श्री यदुनाथ महाप्रभुन कुं हम कोटानुकोटी नमन करत है।

श्रीमतकल्याणरायाणाम सेवना सक्तमानसम ।
श्रीमद विट्ठलेश्वर प्रियम श्री यदुनाथ महाप्रभुम ।।

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00:00 Shasthpeeth Outro
00:33 Welcome Speech
11:31 Kirtan Samaj Start
12:02 ऐ आनंद भयो
21:16 केसर की धोती पेहेरे
27:16 हो चरण नाट
34:23 लाल के गुण गावु श्री वल्लभ
44:38 जयती यदुनाथ व्रज
56:20 बाजे बधाई या वे
01:11:09 नमो देवी यमुने
01:22:13 जुग राज करो श्री गोकुल
01:25:35 आश्रय पद
01:30:42 Pushti Tv Outro
01:30:45 Join Us At

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