माँ नन्दादेवी अष्टमी पूजा एवं मेला | तडागताल | उत्तराखण्ड | जय मां राज राजेश्वरी | जय गढ-कुमाऊँ
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 Published On Aug 26, 2024

नंदा देवी उत्तराखंड की बहुमान्य और बहु पूज्य देवी है। उत्तराखंड के दोनों मंडलों (कुमाऊं और गढ़वाल) में पूज्य देवी है नंदा। उत्तराखंड वासियों का माँ नंदा के साथ ऐसा रिश्ता है, शायद देश में किसी भक्त और उसके आराध्य का हो। कोई इन्हे अपनी बेटी मानता है, कोई बहिन ! मानवीय रिश्तों में बांध कर देवी माँ को प्रेम और स्नेह के बंधन में बांधना भक्ति का एक अलग ही रूप है। यह देवी कत्यूर पंवार और चांद वंशों की कुलदेवी के रूप में पूजित है।

कत्यूरी वंश की सभी शाखाओं में जिया रानी को नंदा देवी का अवतार मानते हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री आदिशक्ति माँ पार्वती के रूप नंदा देवी की हिमवन अर्थात पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में विशेष मान्यता रही है। पौराणिक साहित्य के अनुसार वाराह पुराण नंदा देवी के नाम का अर्थ बताते हुए कहा गया है कि, देवी के इस रूप का हिमवन में आनंद पूर्ण विचरण करने की वजह से इसे नंदा नाम से उद्घोषित किया गया है।

उत्तराखंड में नंदा देवी की अनेक कहानियाँ प्रचलित हैं। क्युकी नंदा ,गढ़वाल के परमार वंश ,कुमाऊं के कत्यूर वंश और चंद वंश की कुल देवी मानी जाती है। इसलिए नंदा देवी को राजराजेश्वरी भी कहा जाता है। सभी राजवंशों में नंदादेवी के बारे में अलग अलग कहानियाँ प्रचलित हैं।

नंदा को किसी चंदवंशीय राजा की पुत्री कहा गया है। कहा जाता है कि , यह राजा हिमालय की पुत्री माँ पार्वती का अनन्य भक्त था। उसकी कोई संतान न होने के कारण वह राजा उदास रहने लगा। एक दिन उसकी भक्ति से खुश होकर माँ पार्वती ने उसके स्वप्न में आकर कहा , कि मै तुम्हारी अगाध भक्ति से अति खुश हूँ। मै एक बार तुम्हारे घर में पुत्री के रूप में जन्म लूंगी। राजा की नींद खुली तो ,वह ख़ुशी के मारे रोमांचित हो गया।

उसने बात अपनी महारानी को भी बताई। माँ पार्वती ने अपने वचनानुसार ,भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी को एक दिव्यकन्या के रूप में रानी के गर्भ से जन्म लिया। जन्म के ग्यारहवे दिन विधि विधान से उसका नामकरण किया गया। राजा ने उस दिव्य कन्या का नाम अपने राज्य के सबसे ऊँचे शिखर नंदाकोट के नाम पर नंदा रखा। चंद साम्राज्य ने इस दिन को हर्षोउल्लास से मनाया। उसके बाद प्रतिवर्ष नंदाष्टमी को यह उत्सव मनाये जाने लगा।

कालान्तर में यह उत्सव अल्मोड़ा का लोकोत्सव या अल्मोड़ा का नंदा देवी का मेला के रूप में मनाये जाने लगा। यधपि यह चंदो और उनकी राजधानी अल्मोड़ा में ही केंद्रित था , लेकिन बाद में इसमें नैनीताल का लोकोत्सव भी जुड़ गया। एक अन्य जनश्रुति के अनुसार ,कत्यूरवंशी राजा कीर्तिवर्मन देव की पत्नी का नाम नंदा था। वह सीता और सावित्री के सामान पवित्र थी।

नंदा देवी के बारे में गढ़वाल में प्रचलित लोकगाथाओं में इन्हे चांदपुर के राजा भानुप्रताप की पुत्री तथा धारानगरी के राजा कनकपाल की धर्मपत्नी बताया गया है। कहते हैं यह अपने दैवीयगुणों के कारण देवी के रूप में पूजी जाने लगी। वही नंदा देवी के बारे में गढ़वाल की दूसरी लोकगाथा में नंदा को हिमालय की पुत्री और चांदपुर राजा की पुत्री की सखी व् धर्म बहिन होने के कारण इसे गढ़वाल की पुत्री के रूप में पूजा जाने लगा।

मुख्यतः नंदादेवी का सम्बन्ध हिमालय और माँ पार्वती से माना जाता है। हिमालयी क्षेत्र (गढ़वाल कुमाऊं) उसका मायका और ,हिमालय, नंदा पर्वत ,कैलाश पर्वत उसका ससुराल माना जाता है। एशिया की सबसे कठिन व् बड़ी पैदल धार्मिक यात्रा नंदा राज जात इसी कहानी के आधार पर होती है। अर्थात नंदा को ससुराल छोड़ने की परम्परा को राज जात के रूप में मनाया जाता है।

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