Published On Sep 27, 2024
दो चोर || Hindi kahaniya || Hindi Moral Stories
दो चोर
राजा कृष्णदेवराय समय-समय पर कारागृह का निरीक्षण करते रहते थे. इसी क्रम में जब एक दिन वे कारागृह का निरीक्षण कर रहे थे, तो एक कोठरी में बंद दो चोर उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए और दया की भीख मांगने लगे.
वे कहने लगे, “महाराज, हम चोरी में माहिर है. चोरी के हर पैंतरे जानते हैं. राज्य के चोरों के बारे भी जानकारी रखते हैं. यदि आप दया कर हमें छोड़ देंगे, तो हम आपके गुप्तचर बन उन चोरों को पकड़वाने में आपकी सहायता करेंगे.”
महाराज ने उन दो चोरों को छोड़ तो दिया, लेकिन एक शर्त भी रख दी. शर्त अनुसार उन्हें तेनाली राम के घर से बहुमूल्य वस्तुओं की चोरी करनी थी. सफ़ल रहने पर उनकी महाराज के गुप्तचर के रूप में नियुक्ति निश्चित थी. लेकिन असफ़ल रहने पर उन्हें फिर से कारागृह में बंद कर दिया जाना था.
दोनों चोरों ने महाराज की शर्त स्वीकार कर ली. रात में तेनालीराम के घर के बगीचे में झाड़ियों के पीछे छुपकर बैठ गए और तेनालीराम के परिवार की सोने की प्रतीक्षा करने लगे.
रात का भोजन ग्रहण करने के बाद तेनालीराम रोज़ की तरह अपने बाग़ में घूमने निकला, तो उसे झाड़ियों के पीछे कुछ हलचल महसूस हूँ. तेनालीराम तीव्र बुद्धि का था. उसने अंदाज़ लगा लिया कि हो न हो, घर में चोर घुस आये हैं.
लेकिन वह सामान्य बना रहा. उसने चोरों को ये भनक नहीं लगने दी कि उसे उनके होने का आभास हो गया है. बगीचे का एक चक्कर लगाने के बाद वह घर के अंदर गया और पत्नि को इशारों-इशारों में बता दिया कि घर में चोर घुस आये हैं.
फिर चोरों की सुनाते हुए ऊँची आवाज़ में पत्नि से कहने लगा, “सुनती हो, इन दिनों राज्य में चोरी की वारदात बढ़ गई है. हमें भी सतर्क रहना होगा. क्यों न हम तुम्हारे जेवर और अन्य बहुमूल्य वस्तुएं एक संदूक में भरकर कुएं में छुपा दें? कोई भी चोर कुएं में बहुमूल्य सामान होने की बात सोच ही नहीं पायेगा.”
पत्नि ने हामी भर दी. उसके बाद तेनालीराम एक संदूक लेकर बाहर आया और उसे जाकर कुएं में डाल दिया.
झाड़ियों में छुपे चोरों ने तेनालीराम की बात सुन ली. वे बड़े ख़ुश हुए कि अब तो आराम से वे तेनालीराम के घर से चोरी कर महाराज की शर्त पूरी कर लेंगे. वहीं बैठकर वे तेनालीराम के परिवार के सोने की प्रतीक्षा करने लगे.
जब तेनालीराम का परिवार सो गया, तो वे झाड़ियों से निकले और कुएं के पास गए. वहाँ बाल्टी और रस्सी रखी हुई थी. बिना देर किये वे बाल्टी से कुएं का पानी निकालने लगे और बगीचे में फेंकने लगे.
पूरी रात वे कुएं से पानी निकालते रहे. भोर हो गई, तब कहीं वे कुएं से संदूक निकालने में कामयाब हो सके. संदूक बाहर आ जाने के बाद उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी संदूक खोलने लगे. लेकिन जैसे ही संदूक खुला, उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. उसमें जेवर या बहुमूल्य वस्तुएं नहीं, बल्कि पत्थर भरे हुए थे.
उन्हें समझते देर नहीं लगी कि वे तेनालीराम द्वारा मूर्ख बनाए जा चुके हैं. तेनालीराम भी तब भी उठ चुका था. वह चोरों के पास गया और अपने बगीचे को सींचने के लिए धन्यवाद देने लगा. दोनों चोर बहुत शर्मिंदा हुए.
तेनालीराम ने महाराज के सैनिकों को बुलवा भेजा था. कुछ ही देर वे तेनालीराम के घर पहुँच गया और दोनों चोरों को ले जाकर कारागृह में डाल दिया गया.