27 सितम्बर 24 I Accounts of Karma - Day- 5 -Dr.Samkit Muniji M.S. live
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 Published On Streamed live on Sep 26, 2024

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बाहरी दौड़ बंद कर भीतर की तरफ आगे बढ़ेगे तो ही आत्मा बन सकेंगी परमात्मा-समकितमुनिजी

जब तक कम नहीं होंगे कषाय हमसे चिपके रहेंगे कर्म, पार नहीं करे खतरे का निशान

विशेष प्रवचनमाला एकाउन्ट ऑफ कर्म का पांचवा दिन

हैदराबाद, 27 सितम्बर। आत्मा जब विभाव (प्रभाव) के अंदर जाती है तो गलत दिशा में कदम बढ़ते है ओर कर्मबंध होते जाते है। जब हम अपने को बाहरी चीजों से भरने का प्रयास करते है तो आत्मा खाली होती जाती है ओर कर्मो का बंध शुरू होता है। बाहर की दौड़ बंद कर भीतर की तरफ बढ़ना ही इनर वर्ल्ड है। इस तरफ बढ़ते है तो कमाने की, प्रसिद्धी पाने की, धर्मात्मा बनने की सारी कोशिशे छूट जाती है। किसी भी तरह की कोशिश आत्मा को परमात्मा बनने से वंचित करती है। ये विचार श्रमण संघीय सलाहकार राजर्षि भीष्म पितामह पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. के ़सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि पूज्य डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में शुक्रवार को विशेष प्रवचनमाला एकाउन्ट ऑफ कर्म के पांचवे दिन व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आत्मा में रमण करते हुए शुद्ध आत्मा होने की अनुभूति होने पर कर्म निर्जरा शुरू हो जाती है। जब तक हम कुछ करते रहेंगे कर्म खत्म नहीं होगा। आत्म अनुभव करना होगा। जिसको आत्मा में रस आना शुरू हो जाता है वह आत्मार्थी हो जाता ओर बाहरी दुनिया उसके लिए ज्यादा महत्व नहीं रखती इससे अशांति स्वत खत्म हो जाती है। उन्होंने कहा कि बाहर रहते है तो आत्मा विभाव में होती है जो कर्मबंध का कारण होता है। कर्मो को अपने से चिपकने मत दो आए तो नीेचे गिरने दो। क्रोध,लोभ,मान,माया जैसे कषायों की जितनी मात्रा रहेगी उसी हिसाब से कर्म चिपकते रहेंगे। जब किसी कर्म में मन,वचन व काया तीनों शामिल हो जाते है तो खतरे का निशान पार कर जाते है। हम क्रोध, लोभ आदि करे तो भी ध्यान रखे कि कभी खतरे का निशान पार नहीं हो ताकि कर्म खत्म करने का अवसर बना रहे। प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने कहा कि आत्मा की अनुमति के बिना कर्म प्रवेश नहीं करते है। स्वभाव आत्मा से जुड़ा होता है जबकि विभाव आने-जाने वाला होता है। जब आत्मा विभाव में पहुंचती तो भीतर स्पन्दन होता है ओर इससे कर्मों को आमंत्रण मिलता है। कर्म करते समय हम उसमें किस हद तक शामिल है इससे आगे की दिशा तय होती है। यह हमेशा ध्यान रखे कि चाहे शुभ कर्मो का बीज बोए या अशुभ कर्मो का बीज बोए वह हमेशा कई गुणा होकर मिलेगा। प्रवचन के शुरू में गायनकुशल जयवन्तमुनिजी म.सा. ने भजन ‘‘शुभ कर्म कमा लो तुम ये जन्म सफल बना लो’’ की प्रस्तुति दी। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा.का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। सुश्राविका बबिता अरविन्द नाहर के मासखमण के घर में प्रवेश करते हुए 27 उपवास की तपस्या रही। चैन्नई से पधारे महावीरचंदजी पगारिया ने कहा कि चैन्नईवासी पूज्य समकितमुनिजी म.सा. के आध्यात्मिक चातुर्मास का बेसब्री से इन्तजार कर रहे है। धर्मसभा में उदयपुर, दिल्ली, चैन्नई,भीलवाड़ा, हुबली आदि स्थानों से पधारे श्रावक-श्राविका भी मौजूद थे।

व्रति श्रावक दीक्षा समारोह 29 सितम्बर को

चातुर्मास के तहत रविवार 29 सितम्बर को व्रति श्रावक दीक्षा समारोह होगा। इसमें श्रावक-श्राविकाएं 12 व्रत में से न्यूनतम एक व्रत या इससे अधिक की दीक्षा ग्रहण करेंगे। चातुर्मास में 2 अक्टूबर को सवा लाख लोगस्स की महाआराधना होगी। चातुर्मास के तहत 3 से 9 अक्टूबर तक सात दिवसीय प्रवचनमाला सद्गुरू सुमति कथा व मैना सुंदरी कथा का वाचन होगा। आयम्बिल तप के महान आराधक पूज्य गुरूदेव भीष्म पितामह राजर्षि सुुमतिप्रकाशजी म.सा. की जयंति 9 अक्टूबर को आयम्बिल दिवस के रूप में मनाई जाएगी। इसी दिन से नवपद आयम्बिल ओली तप की आराधना भी शुरू होगी। भगवान महावीर स्वामी की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र की दीपावली तक चलने वाली आराधना 10 अक्टूबर से शुरू होगी।


निलेश कांठेड़
मीडिया समन्वयक, समकित की यात्रा-2024
मो.9829537627

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