Published On Jun 30, 2024
अल्मोड़ा जिले के मासी क्षेत्र में स्थित भूमिया देवता को भूमि का देवता माना जाता है। जिन्हें जिमदार, भूमिया देवता व क्षेत्रपाल 3 नामों से जाना जाता है ,भूमिया देवता को भूमि का स्वामी ,गांव का रक्षक ,पशु तथा खेती की रक्षा करने वाले ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है।
पहाड़ों में कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी के आसपास जब पहाड़ों में तांत्रिकों का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ गया था तब मासी मेरा मंगल नदी के तट पर एक ज्योतिपुंज का दर्शन हुआ जिसके बाद वहां पर एक मंदिर का निर्माण किया गया और उस स्थान पर भूमिया देवता की पूजा प्रारंभ हुई कहते हैं।
जय भूमियां बाबा की🚩🙏🏻
पौराणिक बृद्धकेदार भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिले के अन्तर्गत पाली पछांऊॅं इलाके में रामगंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। इसे बृद्धकेदार अथवा बूढ़ाकेदार भी कहा जाता है। स्थानीय अनुभववेत्ताओं के मतानुसार इस वैदिक काल के शिवालय को पहला नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मन्दिर का अंश समझा जाता है तो दूसरी ओर केदारनाथ मन्दिर की शाखा। परन्तु यह सत्य है, विनोद नदी व रामगंगा नदी के संगम से शुरू हुई पर्वत माला के ऊत्तरी छोर पर केदारनाथ मन्दिर विराजमान है। भारतवर्ष में शायद यही एक शिवालय है जहॉं पर महाशिव का धड़ स्थापित है। इसकी स्थापना का अनुमान पन्द्रहवीं व सोलहवीं शताब्दी के मध्य का माना जाता रहा है।
यह एक पौराणिक शिवालय होने के साथ-साथ मान्यताऐं भी सारगर्भित हैं। विशेषत: यह शिवालय प्राचीन काल में नि:सन्तान दम्पतियों का ही आराध्य केन्द्र हुआ करता था। बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्व होता है, इसी उपललक्ष में यहॉं प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा को भक्तगण दूर-दूर इलाकों से आते रहे हैं। नि:सन्तान दम्पति पूरी रात रामगंगा नदी में खड़े होकर, हाथों में दीप प्रज्वलित कर श्रधासुमनों के साथ शिव भक्ति में लीन रहते हैं। भोर होने उस दीपक रूपी साधना को रामगंगा में प्रवाहित कर देते हैं। अपनी-अपनी मनोकामनाओं को साकार करने की अस्रुपूर्ण अभिलाषा करते हैं। तत्पश्चात ही महादेव का जलाभिषेक करते हैं। कालांतर में नि:सन्तान दम्पतियों के साधना संगम का अपभ्रंश होकर मेला हो गया। अब इसे कार्तिक मास की पूर्णिमा का मेला यानि केदारौ कौतीक (स्थानीय बोली में) कहने लगे हैं।
यहॉं पर महाशिवरात्रि के पर्व का भी विशेष महत्व होता है।
🚩ॐ नमः शिवाय 🚩