मन के खेल कब रुकेंगे? || आचार्य प्रशांत, कठ उपनिषद् पर (2024)
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 Published On Premiered Sep 20, 2024

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वीडियो जानकारी: 10.02.24 , वेदांत संहिता , ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
~ क्या आध्यात्मिक व्यक्ति असामाजिक हो जाता है?
~ मन के खेल कब रुकेंगे?
~ आम आदमी अध्यात्म से इतना क्यों डरता है?
~ क्या मुक्तपुरुष सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त होता है?
~ संसारी और ज्ञानी में क्या अंतर होता है?

शान्तसंकल्पः सुमना यथा स्याद्वीतमन्युर्गौतमो माभि मृत्यो ।
त्वत्प्रसृष्टं माभिवदेत्प्रतीत एतत्त्रयाणां प्रथमं वरं वृणे ॥

(नचिकेता ने कहा) हे यमराज! मेरे पिता गौतम पुत्र उद्दालक, मेरे प्रति शान्त संकल्प वाले,
प्रसन्न मन वाले तथा क्रोध रहित हो जाएँ। आपके द्वारा वापस घर भेजे जाने पर मुझे (मेरे पिता)
पहचानकर मेरे साथ पूर्ववत् प्रेमपूर्ण व्यवहार करें, (आपके द्वारा प्रदत्त) तीन वरदानों में से यह प्रथम वर माँगता हूँ।
~ कठोपनिषद - 1.1.10

संगीत: मिलिंद दाते
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